________________
वाक्यरचना बोध
१. कर्त्ता में प्रत्यय होने से कर्त्ता में प्रथमा विभक्ति होती है । वर्तमान काल में इसका चिन्ह क्रिया के आगे 'है' होता है । जैसे -- शिष्य पढता हैशिष्यः पठति । कहीं-कहीं इसका चिन्ह नाम के आगे 'ने' भी होता है । जैसेमहावीर ने कहा - महावीरोऽवदत् । उसने कहा- सोऽवदत् ।
२. कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है । इसका चिन्ह 'को' है । जैसेवह गांव को जाता है- - सः ग्रामं गच्छति । कहीं-कहीं 'को' चिन्ह द्वितीया विभक्ति में नहीं भी मिलता है । जैसे—वह पुस्तक पढता है - सः पुस्तकं पठति ।
१०
३. साधन में तृतीया विभक्ति होती है । इसका चिन्ह 'से और द्वारा' है । जैसे - लक्ष्मण ने बाण से रावण को मारा - लक्ष्मणः बाणेन रावणं जघान । वह रजोहरण से पूंजता है - सः रजोहरणेन प्रमार्जति ।
४. सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है । इसका चिन्ह ' के लिए' और 'को' है । जैसे— राम साधु को भिक्षा देता है - रामः साधुभ्यो भिक्षां ददाति । ५. अपादान में पंचमी विभक्ति होती है | इसका चिन्ह 'से' है । जैसे - मोहन गांव से आता है— मोहन: ग्रामात् आगच्छति ।
६. सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है । इसका चिह्न 'का, के, की ' है । जैसे - मोहन का पुत्र – मोहनस्य पुत्रः ।
७. अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है । इसका चिह्न 'में' या 'पर' है । जैसे - वन में सिंह है -- वने सिंहः अस्ति ।
८. संबोधन में प्रथमा विभक्ति होती है । जैसे – हे जिन ।
सर्वनाम के शब्दों में संबोधन विभक्ति नहीं होती है ।
कर्त्ता आदि कारकों के चिह्न, विभक्ति और वचनों को इस रूप में याद कर सकते हैं
कारक
१. कर्त्ता
चिह्न
है, ने
को
विभक्ति एकवचन
सि
प्रथमा
द्वितीया
२. कर्म
३. साधन से, द्वारा तृतीया ४. सम्प्रदान के लिए, को चतुर्थी ५. अपादान से
पंचमी
६. सम्बन्ध का, के, की षष्ठी ७. अधिकरण में, पर
सप्तमी
अम्
टा
ङे
ङसि
ङस्
ङि
संधिविचार
द्विवचन
औ
औ
बहुवचन
जस्
शस्
भिस्
भ्याम्
भ्याम् भ्यस्
भ्याम्
ओस्
ओस्
भ्यस्
आम्
सुप्
नियम १७ - ( ऋणे प्रवसन कम्बलदशार्णवत्सरवत्सतरस्यार् ९।२।१४ )
प्र, वसन, कम्बल, दश, ऋण, वत्सर, वत्सतर शब्दों के आगे ऋण शब्द होने