________________
पाठ ६८ : अच् आदि प्रत्यय
शब्दसंग्रह करकः (लोटा) । स्थालिका (थाली)। कंसः (गिलास) । काचकंस: (काच का गिलास) । कटोरम् (कटोरा)। घट: (घडा) । उदञ्चनम् (बाल्टी) । वारिधि : (तांबे का कलश) । द्रोणिः (टब)। स्थाली (पतीली, थाली) । स्वेदनी (कडाही) । ऋजीषम् (तवा)। पिष्टपचनः (कडाही, तवा)। हसंती (अंगीठी) । उद्ध्मानम् (स्टोप) । धिषणा (प्याली, कटोरी) । दर्वी (चमचा, कलछुल) । चषकः (प्याला, कप)। शरावः (प्लेट, तस्तरी) । उखा (तपेली, बटलोई).। हस्तधावनी (चिलमची) । संदंशः (चीमटा) ।
___अच्, अन, णिन् क. ड. श. ण प्रत्यय
अचादि प्रत्यय कर्ता में होते हैं । ये पुल्लिग होते हैं। इनका अर्थ होता है करने वाला, बोलने वाला आदि । हिन्दी भाषा में वाला अर्थ में ये प्रत्यय होते हैं।
नियम ५९७- (अच् ५।१।६०) सब धातुओं से अच् प्रत्यय होता है । करः, हरः, पचः, पठः लेहः, देवः, देहः, कोपः, गोपः, नर्तः, दर्शः।
नियम ५६८-(अझैच ५।२।२०) पूर्वपद में कर्म हो तो अर्ह धातु से अच् प्रत्यय होता है । पूजार्हः साधुः । वन्दनाऱ्या साध्वी। मालार्हा इन्दिरा ।
नियम ५९६- (वयोऽनुद्यमे हृनः ५।२।२१) कर्म पूर्वपद में हो तो हृन् धातु से अच् प्रत्यय होता है वयः और अनुद्यम (श्रम का अभाव) अर्थ हो तो। कवचहरः क्षत्रियकुमारः। अंशहरो दायादः । अस्थिहरः श्वशिशुः । अनुद्यम-मनोहरः प्रासादः, मनोहरा बाला।
नियम ६००-(आङः शीले ५।२।२२) कर्म उपपद में हो, आङ् पूर्वक हृन् धातु से शील अर्थ गम्यमान हो तो अच् प्रत्यय होता है । शील का अर्थ है स्वाभाविकी प्रवृत्ति । पुष्पाणि आहरति इत्येवं शीलः पुष्पाहरः । फलाहरः । पुष्प आदि आहरण करने में फलनिरपेक्षा स्वाभाविकी वृत्ति है।
____ नियम ६०१ –धनुर्दण्डत्सरुलाङ्गलाकुष्टिशक्तियष्टितोमरघटेषु अहेर्वा ५।२।२४) धनुष आदि शब्द कर्मरूप में उपपद में हो तो ग्रह, धातु से अच् प्रत्यय विकल्प से होता है । पक्ष में अण् प्रत्यय भी। धनुर्ग्रहः, धनुाहः । दण्डग्रहः, दण्डग्राहः । त्सरुग्रहः, त्सरुग्राहः । लांगलग्रहः, लांगलग्राहः । अंकुशग्रहः, अंकुशग्राहः। ऋष्टिग्रहः, ऋष्टिग्राहः । शक्तिग्रहः, शक्तिग्राहः। यष्टिग्रहः,