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वाक्यरचना बोध
गन्तुं गन्तव्यम् । पातुं-पातव्यम् । जेतुं-जेतव्यम् आदि ।
अनीय प्रत्यय के लिए नामि धातु को गुण होता है, इ और ई को ए, उ और ऊ को ओ, ऋ और ऋ को अर् होता है। उसके बाद ए को अय, ओ को अव हो जाता है। (देखें संधिविचार नियम ६, २०, २१)
जि-जयनीयम् । चि-चयनीयम् कृ-करणीयम् । हु हवनीयम् । भू-भवनीयम् । उपधा में नामि हो उसे भी गुण होता है। जैसे—लिख्लेखनीयम् । शुच्–शोचनीयम् । दृश्–दर्शनीयम् ।
प्रयोगवाक्य त्वया साध्व्या भवितव्यम् । जनैः रात्रौ न अत्तव्यं, अदनीयं वा । छात्राभिः पाठः पठनीयः पठितव्यो वा। वीरन्द्र ण कार्य कर्तव्यं करणीयं वा । सुरेशेन तत्वं बोद्धव्यं बोधनीयं वा। भवतः भवता वा अत्रैव शयितव्यं शयनीयं वा । युष्माभिः रात्री जागर्तव्यं, जागरणीयं वा । मुनिभिः नाट्यं न दर्शनीयं द्रष्टव्यं वा। जिज्ञासुभिः प्रश्न: प्रष्टव्यः प्रच्छनीयः वा । आचार्यः मम वार्ता श्रोतव्या श्रवणीया वा । त्वया न हसनीयम् ।
संस्कृत में अनुवाद करो तुम्हें विद्वान् होना चाहिए। बालक को मीठा नहीं खाना चाहिए। रमेश को तत्व जानना चाहिए । हमें किसी प्राणी को नहीं मारना चाहिए। तुम सबको तीर्थंकरों की स्तुति करनी चाहिए । हम सबको सदा पाप से डरना चाहिए। सेवा में आये हुए सभी व्यक्तियों को आचार्य श्री का प्रवचन सुनना चाहिए। विद्यार्थियों को संस्कृत जाननी चाहिए। मनुष्यों को किसी का धन नहीं हरना चाहिए। श्रावकों को प्रतिक्रमण करना चाहिए। पिताजी को पानी नहीं भरना चाहिए। वृद्ध को नये वस्त्र धारण करने चाहिए । साधुओं को उत्तराध्ययन याद करना चाहिए। विद्यार्थी को अधिक नहीं सोना चाहिए । तुम्हें मेरी बात माननी चाहिए। छात्रों को प्रश्न पूछना चाहिए। स्त्रियों को नहीं नाचना चाहिए। सभी को बिना प्रयोजन नहीं हंसना चाहिए । अकेले व्यक्ति को रात में बाहर नहीं जाना चाहिए । मनुष्य को हर वक्त विद्यार्थी रहना चाहिए। हमें हमारे कार्य में तत्पर रहना चाहिए। आप महान् हैं इसलिए आपको किसी के साथ भी असद् व्यवहार नहीं करना चाहिए। आचार्यवर का व्याख्यान प्रतिदिन सुनना चाहिए। चंदन को पुस्तक पढनी चाहिए। मुनियों को स्वाध्याय करना चाहिए।
अभ्यास १. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करोसाधवः पापात् भेतव्यम् । अस्माभिः शास्त्रं बोद्धव्यः । केनापि अतिभोजनं