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पाठ ६३ : विभक्त्यर्थप्रक्रिया (१)
शब्दसंग्रह पर्पट: (पितपापडा)। कोलफलम् (पिपलामूल)। खसफलम् (पोस्त) । स्फटिकरि, स्फटिका (फिटकडी)। वंशलोचना (वंशलोचन)। भंगा, विजया, मातुली (भांग) । मंजिष्ठा, तुवरा (मजीठा)। पथिका, मधुरिका (मुनक्का) । तिमिरः, कोकदंता (मेंहदी) । सिक्थकम्, मयनम् (मोम) । रसाञ्जनम् (रसौत) । रालः (राल) । अरिष्ठकः (रीठा) । लाक्षा, जतुका (लाख)।
विभक्त्यर्थप्रक्रिया वर्तमान, भूत और भविष्यत् काल की क्रियाओं के लिए तिबादि, यादादि आदि १० विभक्तियां हैं (देखो पाठ ६) । कुछ शब्दों के योग में विभक्तियों का काल बदल जाता है। वाक्य रचना की सुविधा के लिए अथवा ज्ञान की विशिष्टता के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
नियम ५७२ (स्मे च तिबादि: ४।४।६६) अनद्यनतनभूत (दिबादि) परोक्ष (णबादि) अपरोक्ष (द्यादि) के अर्थ में स्म और पुरा शब्द के योग में तिवादि विभक्ति होती है। स्म, पुरा धातु के आगे, पीछे कहीं लगाया जा सकता है । भवति स्म महावीरः (महावीर हुए थे ) । वसति इह पुरा मुनिः (यहां मुनि रहते थे)।
नियम ५७३-(भूतेऽनद्यतनेऽयदिस्मृत्यर्थे स्यत्यादि: ४।४।५६) स्मृति अर्थ की धातु का पूर्वपद में प्रयोग हो, यत् शब्द का प्रयोग न हो तो अनद्यतनभूत अर्थ में स्यत्यादि विभक्ति होती है । साधो ! स्मरसि स्वर्गे स्थास्यामः (हे साधु ! याद है हम स्वर्ग में रहते थे)। इसी प्रकार स्मरसि के स्थान पर अभिजानासि, बुध्यसे, चेतयसे का प्रयोग हो सकता है। क्रिया में स्थास्याम: के स्थान पर वत्स्यामः, गमिष्यामः का प्रयोग किया जा सकता है।
नियम ५७४---- (कृताऽस्मृत्यतिनिह्नवयोर्णबादिः ४।४।६१) कृतकार्य की चित्त विक्षेप के कारण स्मृति न रहे या अतिनिह्नव का अर्थ गम्यमान हो तो अनद्यतनभूत के अर्थ में णबादि विभक्ति होती है। सुप्तोऽहं किल विललाप। कि कलिंगेषु ब्राह्मणो हतः ? नाहं कलिंगं जगाम ।
नियम ५७५-- (परोक्षे हशश्वतो दिबादिश्च ४।४।६२) ह और शश्वत् का प्रयोग करने से अनद्यतनपरोक्ष के अर्थ में दिबादि और णबादि विभक्ति