________________
पद व्यवस्थाप्रक्रिया (२)
नियम ५६८- - ( स्मृदृशः सन: ३।३।६१ ) स्मृ और दृश् धातु सन्नन्त हो तो आत्मने पद होती है । सुष्मूर्षते पूर्ववृत्तम् । दिदृक्षते मुनिम् ।
नियम ५६६- - (अभिन्नकर्मकप्राणिकर्तृकाञ्ञिनः ३|३|१०२ ) अभिन् अवस्था में धातु अकर्मक हो, प्राणी कर्ता हो तो वह धातु विन्नन्त में परस्मैपद हो जाती है । आस्ते चैत्रः = आसयति चैत्रम् । कारयति धर्मं (कृ धातु सकर्मक है) । शोषयते व्रीहिन् आतपः । यहां कर्ता प्राणी नहीं है । नियम ५७० - (चल्याहारार्थ बुधयुधनशजनेङ्गुद्रुश्रुभ्यः
२१५
३।३।१० ३) चलि (कम्पन) और आहार - इन अर्थवाली धातुएं, बुध्, युध्, नश्, जन्, इङ्, प्रु, द्रु, स्र – ये सभी धातुएं भिन्नन्त में हो तो परस्मैपद हो जाती हैं । चलयति, कम्पयति, चोपयति वा शाखाम् । निगारयति, भोजयति, आशयति वा चैत्रं अन्नम् । रविः पद्मं बोधयति । योधयति काष्ठानि । नाशयति पापम् । जनयति पुण्यम् । सूत्रं अध्यापयति शिष्यम् । प्रावयति राज्यम् ( प्रापयति ) । द्रावयति लोहम् । स्रावयति तैलम् ।
नियम ५७१ - ( प्राद् वह: ३ | ३ | ६४ ) प्र उपसर्गपूर्वक वह धातु परस्मैपद होती है । प्रवहति ।
प्रयोगवाक्य
एक: मेष: अन्य मेषं अनुकरोति । दुष्टः सज्जनं अभिक्षिपति । शीला सखिभिः सार्द्धं उद्याने आरमति । विद्वान्सः कथं विप्रवदन्ते ? दस्युः सभ्यं वञ्चयते । सा मम वार्तां मिथ्याकारयते । मातुलानी मुनि दिदृक्षते । धनञ्जयाय धान्यकं रोचते । शुण्ठी उण्णा भवति । केचित् लवणमयं शाकं न जिघत्सन्ति । सा दुग्धे हरिद्रां नयति । शीला लवङ्ग न अश्नाति ।
संस्कृत में अनुवाद करो
साजी में खार होता है । भाभी ने सुरेश से सफेद जीरा, लाल मिसरी, सिंगरफ, सिरका मंगाया था । साबुन किससे बनती है ? सुरमा आंख के लिए लाभदायक है । क्या तुम सोंफ खाते हो ? इस सब्जी में हींग नहीं है । शिष्य गुरु का अनुकरण करता है । नौकर मालिक पर आक्षेप करता है । वही सच्चा मुनि है जो आत्मा में रमण करता है । बच्चे क्यों विवाद करते हैं ? रमेश भाभी को ठगता है । अविनीत शिष्य बार-बार आचार्य के कथन को झूठा करता है । मैं प्रतिदिन साधुओं को देखना चाहता हूं । मंत्रीमुनि ने आचार्य श्री को बलात् पट्ट पर बैठाया । ऊंट शाखा को कंपाता है । माता पुत्र को मिठाई खिलाती है ।
अभ्यास
१. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करो
पराकरोति, प्रतिक्षिपति, सुष्मूर्षते, विप्रवदन्ति, भोजयति, बोधयति ।