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पाठ ५९ : यङ्लुगन्त
शब्दसंग्रह बोभवीति (भू) बार-बार होता है । पापेति, पापाति (पा) बार-बार पीता है । जानेति, जाघ्राति (घ्रा) बार-बार सूंघता है । तास्थाति (ष्ठां) बार-बार बैठता है । जेजयीति, जेजेति (जि) बार-बार जीतता है। स्मरीति, स्मति (स्मृ) बार-बार याद करता है । तातति, तातरीति (त) बार-बार तैरता है । दाध्येति, दाध्याति (ध्य) बार-बार चिंतन करता है। जागेति, जागाति (ग) बार-बार गाता है । शोशोक्ति (शुच्) बार-बार शोक करता है। लोलुञ्चीति (लुञ्च) बार-बार लोच करता है । वावाञ्छीति (वाछि) बार-बार चाहता है। वाव्रजीति, वाव्रजति (व्रज्) बार-बार जाता है। तात्यजीति, तात्यक्ति (त्यज्) बार-बार छोडता है। पापठीति, पापट्टि (पठ्) बार-बार पढता है । चेक्रीडीति, चेत्रीट्टि (क्रीड्) बार-बार खेलता है। बम्भणीति, बम्भण्टि (भण्) बार-बार कहता है । चाखादीति, चाखात्ति (खाद्) बार-बार खाता है । जागदीति, जागत्ति (गद्) बार-बार कहता है। लालपीति, लालप्ति (लप्) बार-बार कहता है। दादधीति, दादद्धि (धा) बारबार धारण करता है । चर्कर्ति, चरिकर्ति, चरीकति (कृ) बार-बार करता है। धातु-भू धातु के यङ्लुगन्त के रूप याद करो। (देखो परिशिष्ट ३)
यङ्लुगन्त यङ्लुगन्त में यङ्प्रत्यय ही आता है पर उसका लोप हो जाता है। उसके साथ तिबादि, याद्रादि, तुबादि, दिवादि प्रत्ययों में हस आदि पित् प्रत्ययों से इट् बहुल (कहीं विकल्प से) हो जाता है। यङ्लुगन्त में रूप परस्मैपद में चलते है।
नियम ५२६-(सन् यङश्च ४।११७४) इस सूत्र मे धातु द्वित्व हो जाती है । भू–बोभोति, बोभवीति । बोभूयात् । बोभोतु, बोभवीतु । अबोभोत्, अबोभवीत् । अबोभोत्, अबोभोताम्, अबोभूवु. । बोभवाञ्चकार, बोभूयात्, बोभविता, बोभविष्यति, अबोभविष्यत् । नाथू-नानाथीति, नानात्ति । धा-दादधीति, दादद्धि ।
नियम ५२७- (रुरिकौ च लुकि ४।१।११०) ऋकारवान् धातुओं के यङ् का लुक् और द्वित्व होने पर पूर्व को रुक्, रिक्, रीक का आगम होता है। कृ-चर्कति, चरिकति । चर्करीति चरिकरीति, चरीकरीति ।