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पाठ ५३ : क्रियाविशेषण
शब्दसंग्रह
केसरी (केसरिन्) शेर । द्वीपी ( द्वीपिन्) व्याघ्र, बघेरा । तरक्षुः ( तेंदुआ ) । भल्लूक: ( भालू ) । शाखामृग: (बन्दर) । गोमायुः ( गीदड ) | वराहः (सूअर ) । वृकः ( भेडिया ) । कुरङ्गः (हिरण) । उक्षा ( उक्षन् ) बैल | लोमशा ( लोमडी) । महिष : ( भैंसा ) । अज: ( बकरा ) । मेषः ( भेड ) | कौलेयक : (कुत्ता) । सरमा ( कुतिया ) । खर: ( गदहा) | मार्जारी (बिल्ली ) । वृश्चिक : ( बिच्छू ) । गोधा ( गोह ) । गृहगोधिका ( छिपकली ) । लूता ( मकडी ) । कर्णजलौका ( कानखजूरा, गोजर) । मीन: (मछली) । कुलीर: ( केकडा) । कच्छप: ( कछुआ ) । नत्र : ( मगर ) । भेक: (मेंढक ) । क्रियाविशेषण
।
विशेषण विशेष्य की अवस्था को प्रगट करता है । विशेष्य में जो लिंग, विभक्ति, और वचन होते हैं वे ही विशेषण में किए जाते हैं । क्रियाविशेषण क्रिया की अवस्था बताता है भाव को क्रिया कहते हैं । भाव में प्रत्यय होने पर जो लिंग, वचन होते हैं वे ही क्रियाविशेषण में होते हैं । ( भावस्यैकत्वात् एकवचनमेव ) भाव (क्रिया) में एकवचन ही होता है । लिंगानुशासन के अनुसार भाव में नपुंसकलिंग होता है । (f (क्रियाविशेषणात् २|४| ४८ ) सूत्र से क्रियाविशेषण में द्वितीया विभक्ति होती है । क्रिया परिवर्तनशील होती है । कहीं वह कर्ता के अनुसार चलती है और कहीं वह कर्म के अनुसार । कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य वाक्य होने पर भी क्रियाविशेषण में एकवचन और नपुंसकलिंग रहता है । जैसे—
१. घनाघनाः पटु ध्वनन्ति ।
२. वेगं पतति पानीयम्
दो नम्बर के वाक्य में पतति क्रिया एक वचन की है और वेगं क्रियाविशेषण भी एक वचन और नपुंसकलिंग में है । एक नम्बर के वाक्य में ध्वनन्ति क्रिया कर्तृवाच्य में कर्ता के कारण बहुवचन में है परन्तु क्रियाविशेषण पटु एकवचन और नपुंसकलिंग में है । कुशलं नृत्यन्ति, मन्दं गच्छति, मधुरं गायति इन सभी स्थानों पर क्रिया बहुवचन में है परन्तु क्रियाविशेषण एक वचन और नपुंसकलिंग ही है । क्रिया वाच्य के अनुसार अपना रूप बदल लेती है, पर क्रियाविशेषण भाव में प्रत्यय के अनुसार ही चलता है ।