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पाठ ४९ : तद्धित १२ (मत्वर्थ प्रत्यय)
शब्दसंग्रह अन्धासिकः (आडती) । ताम्बूलिकः, शाल्मलः (तम्बोली)। उपदर्शकः (दर्बान) । रोमकः (नमक बनाने वाला) । भारुडः (पहरेदार) । चित्रकारः (फोटोग्राफर)। पांशुलः (बोरी बनाने वाला)। उत्कलः, वीवधिकः (भार उठाने वाला) । इन्द्रजलिकः, शौभिकः (मदारी) । नागरकः (मूर्ति बनाने वाला) । धिग्वणः (मोची)। कोटकः (घर बनाने वाला) । अहितुण्डिकः (संपेरा) । क्षणदः (ज्योतिषी) ।
धातु-मुच्लँन्ज्—मोक्षणे (मुञ्चति, मुञ्चते) छोडना। लिखअक्षरविन्यासे (लिखति) लिखना । प्रच्छंज्–ज्ञीप्सायाम् (पृच्छति) पूछना । स्पृशंज्-स्पर्श (स्पृशति) स्पर्श करना । विशंज्—प्रवेशने (विशति) प्रवेश करना । इषज्—इच्छायाम् (इच्छति) चाहना । मुं—प्राणत्यागे (म्रियते) मरना।
मुच, मुंज और इषज् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या १०७,४३,१०८)।
लिख्, प्रच्छ, स्पृश्, विश् इन धातुओं के तिबादि तक के रूप मुच् की तरह चलते हैं। शेष धातु रूप परिशिष्ट २ में देखें (संख्या १०६ से ११२) ।
मत्वर्थ वह इसका या इसमें है-इस अर्थ में जो प्रत्यय होते हैं उनको मत्वर्थ प्रत्यय कहते हैं। मतु प्रत्यय कुछ अपवादों को छोडकर सभी शब्दों से होता है । जैसे—गावोऽस्य सन्तीति=गोमान् । तरवो यस्मिन् सन्तीति तरुमान् ।
नियम नियम ४३४-- (मावर्णान्तोपधाद् वतुः ८।१।२) म् और अवर्ण अंतवाले तथा म् और अवर्ण उपधा वाले शब्दों से मतु के स्थान पर वतु प्रत्यय होता है। मतु और वतु में उ का लोप हो जाता है। इसके रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। पुल्लिग में भवत् और नपुंसकलिंग में जगत् की तरह चलते हैं।' स्त्रीलिंग में ईप् जुडकर नदी की तरह रूप चलते हैं। किंवान्, लक्ष्मीवान्, ज्ञानवान्, विद्यावान्, यशस्वान् भास्वान् । लक्ष्मीवती, ज्ञानवती, गुणवती, विद्यावती।
नियम ४३५- (अस्तपोमायामेधास्रजो विन् वा ८।१।६) अस् अंत