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वाक्यरचना बोध नियम नियम २२४ क-(शिवादेरण ६।२।४२) शिव आदि शब्दों से अपत्य अर्थ में अण् प्रत्यय होता है । शैवः, प्रौष्ठः, भौमः ।।
ख-(गोत्रे बिदादेः पौत्रादौ ६।२।५६) बिद आदि शब्द गोत्रवाची हों तो पौत्र आदि अपत्य अर्थ में अञ् प्रत्यय होता है। बिदस्य पौत्राद्यपत्यंबैदः । काश्यपः । भारद्वाजः । अपत्य अर्थ में (अतइन्) से इञ् प्रत्यय ही होगा। बिदस्य अपत्यं =बैदिः । : नियम २२५ क-(गर्गादेर्यञ् ६।२।५७) गोत्र अर्थ में होने वाले गर्ग आदि षष्ठी अंतवाले शब्दों से पौत्र आदि अपत्य अर्थ में यञ् प्रत्यय होता है। गर्गस्य अपत्यं पौत्रादि--गार्ग्यः । वात्स्यः ।
ख-(नडादिभ्य आयनण् ६।२।६८) नड आदि षष्ठ्यन्त शब्दों से पौत्र आदि अपत्य अर्थ में आयनण् प्रत्यय होता है। नडस्य पौत्राद्यपत्यंनाडायनः । चारायणः । आमुष्यायणः ।
नियम २२६-(द्विस्वरादनद्याः ६।२।८६) दो स्वर वाले स्त्रीप्रत्ययान्त अनदीवाची शब्दों से अपत्य अर्थ में एयण् प्रत्यय होता है। दात्तेयः, गौप्तेयः । सैतः, सान्ध्यः, माहः—यहां एयण् प्रत्यय नहीं हुआ है क्योंकि ये नदी के नाम हैं।
नियम २२७-~(क्षुद्राभ्यो वा ६।२।१०४) जो स्त्री अंग से हीन हो या जिसका पति निश्चित न हो वह स्त्री क्षुद्रा कहलाती है। क्षुद्रावाची शब्दों से अपत्य अर्थ में एरण् प्रत्यय विकल्प से होता है, पक्ष में एयण् प्रत्यय भी। काणायाः अपत्यं =काणेरः, काणेयः । दासेरः, दासेयः । नाटेरः, नाटेयः । ... नियम २२८ क-(स्वसुरीयः ६।२।१०६) स्वसृ शब्द से अपत्य अर्थ में ईय प्रत्यय होता है । स्वस्रीयः ।
ख-(भ्रातुर्व्यश्च ६।२।१०७) भ्रात॒ शब्द से अपत्य अर्थ में व्य और ईय प्रत्यय होता है । भ्रातुः अपत्यं =भ्रातृव्यः, भ्रात्रीयः ।
ग-(श्वशुराद्यः ६।२।११४) श्वशुर शब्द से अपत्य अर्थ में य प्रत्यय होता है । श्वशुरस्य अपत्यं = श्वशुर्यः ।
नियम २२६-(मनोर्याणौ षुक् च ६।२।११७) मनु शब्द से य और अण् प्रत्यय होता है। जाति के अर्थ में षुक का आगम होता है। मनोरपत्यानि=मनुष्याः, मानुषाः। जहां जाति का अर्थ नहीं वहां मानवः, मानवाः।
नियम २३०-(इतोऽनित्र : ६।२।६०) इञ् प्रत्यय अंत वाले शब्दों को छोडकर दो स्वरवाले इकारान्त शब्दों से अपत्य अर्थ में एयण् प्रत्यय होता है। नाभेरपत्यं =नाभेयः । आत्रेयः, आहेयः ।