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पाठ ३८ : तद्धित १ (अपत्य)
शब्दसंग्रह रक्तिका, गुंजा (रती) । माषः (माशा) । टंकः (चारमाशा) । षटंका (दो तोला) । कोलः, तोलः (तोला) । पाद:, कुडपः (पाव या २० तोला)। अर्धसेटकम् (आधासेर) । मेटकम् (सेर)। मनः (मन या चालीस सेर) । द्वयंगुलम् (एक इंच से कुछ अधिक) । गजः (गज) । चतुरांगुलः (गिरह सवा दो इंच) । धनु: (चार हाथ) । पादः (फुट) । मीलम् (मील) ।
घातु-रुदक्-अश्रुविमोचने (रोदिति) रोना।
निष्वपंक्–शये (स्वपिति) सोना । चकासृक्-दीप्तौ (चकास्ति) दीप्त होना।
रुद्, ष्वपंक और चकासृक् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या २३,८२,८३) ।
तद्धित तस्मै लौकिकवैदिकशब्दसंदर्भाय हितः तद्धितः । लौकिक और वैदिक शब्दों के संदर्भ के लिए हितकर हो उसे तद्धित कहते हैं। अथवा ताभ्यः प्रकृतिविकृतिभ्यो हितः तद्धितः । शब्दों की प्रकृति और विकृति के हित के लिए हो उसे तद्धित कहते हैं। तद्धित के प्रत्यय नाम के आगे ही लगते हैं। तद्धित में अनेक अर्थ हैं और प्रत्यय भी अनेक हैं । एक अर्थ में भी अनेक प्रत्यय लगते
__ अपत्य का अर्थ है-संतान । पुत्र और पुत्री दोनों अपत्य हैं । पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र आदि सब अपत्य होते हैं। प्रपौत्र से गोत्र प्रारंभ होता है, पुत्र
और पौत्र से नहीं । गोत्र का नामकरण व्यक्ति के आधार पर हुआ है। जैसे गर्ग के प्रपौत्र आदि गार्ग्य कहलाते हैं, कश्यप के प्रपौत्र आदि काश्यप और भृगु के प्रपौत्र आदि भार्गव ।
(तस्यापत्ये) अकारान्त गोत्रवाची नाम को छोडकर षष्ठीअंत वाले नाम से अपत्य अर्थ में अण् प्रत्यय होता है। (अतइञ्) गोत्र के आदि व्यक्ति का नाम अकारान्त हो तो उससे अपत्य अर्थ में इञ् प्रत्यय होता है । दशरथस्य अपत्यं =दाशरथिः का अर्थ हुआ दशरथ के पुत्र । जितने पुत्र हैं सब दाशरथि हैं। यह विशेषण है। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न में से किसी भी विशेप्य का विशेषण बन सकता है । दाशरथिः रामः ।