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समास ६ (एकशेष)
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साथ में एक साथ कहे जाते हों तो उनमें त्यदादि शब्द शेष रहता है । जैसेस च चैत्रश्च - तो। यदि दोनों शब्द त्यदादि हों तो उनमें अन्तिम शब्द शेष रहता है । स च यश्च - यौ । भवांश्च अहं च -- आवाम् । कहीं-कहीं पर पूर्व शब्द भी शेष रह जाता है । सश्च यश्च =तो । अयं च एष च :- इमो।
नियम २११ (क)--स्त्रीपुंनपुंसकानां तु सहोक्तो परलिङ्गता'स्त्रीलिंग, पुल्लिग और नपुंसकलिंग तीनों लिंगों के शब्दों की सहोक्ति हो तो अन्तिम लिंग शेष रहता है।
___खस्त्रीलिङ्गयोः परं पुल्लिगमेव भवति- स्त्रीलिंग और पुल्लिग शब्द हों तो उनमें पुल्लिग शब्द शेष रहता है। जैसे-स च देवदत्ता च= तौ।
ग-स्त्रीनपुंसकयोः परं नपुंसकमेव भवति-स्त्रीलिंग और नपुंसक शब्द हों तो उनमें नपुंसकलिंग शेष रहता है । स च रत्नं च = ते!
___घ- पुनपुंसकयोः परं नपुंसकमेव भवति-पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्द हों तो उनमें नपुंसकलिंग शेष रहता है। जैसे - तत् च चैत्रश्च =ते ।
नियम २१२-(नपुंसकमऽनपुंसकेनैकत्वं च वा ३।१।१४४) अनपुंसक नाम के साथ नपुंसक नाम हो तो उनमें नपुंसक नाम शेष रहता है और उनका एकत्व विकल्प से होता है। जैसे- शुक्लं च वस्त्रं, शुक्लश्च कम्बल:=ते शुक्ले । पक्षे-- शुक्लम् (एकत्वे) । शुक्लं च वस्त्रं, शुक्लश्च कम्बलः, शुक्ला च शाटी तानि शुक्लानि । पक्षे-शुक्लम् ।
नियम २१३- (भ्रातृपुत्राः स्वसदुहितृभिः ३।१।१३७) भ्राता शब्द के अर्थ वाले शब्दों के साथ में स्वसृवाची शब्द हों तो भ्रातृवाची शब्द शेष रहता है । जैसे-भ्राता च स्वसा च-भ्रातरौ । सोदर्यश्च स्वसा च =सोदयौं ।
पुत्रवाची शब्दों के साथ में दुहितवाची शब्द हों तो पुत्रवाची शब्द रहता है । जैसे-पुत्रश्च दुहिता च = पुत्री । पुत्रश्च सुता च-पुत्रौ ।
नियम २१४-(पिता मात्रा वा ३३१११३८) माता शब्द के साथ पितृ शब्द हो तो पिता शब्द विकल्प से शेष रहता है । जैसे—पिता च माता च - पितरौ । पक्षे–मातापितरौ। अर्घ्य होने के कारण माता शब्द का प्राग निपात हुआ है।
नियम २१५= (श्वसुरः श्वश्रूभ्याम् ३।१।१३९) श्वश्रू शब्द के साथ श्वसुर शब्द विकल्प से शेष रहता है। जैसे-श्वश्रूश्च श्वसुरश्च =श्वसुरी। पक्षे- श्वश्रूश्वसुरी।
नियम २१६ - (पुमान् स्त्रिया ३।१।१४२) स्त्रीवाची शब्द के साथ में पुरुषवाची शब्द हो तो पुरुषवाची शब्द शेष रहता है। उनमें द्विवचन और बहुवचन संख्या के अनुसार होते हैं । जैसे—ब्राह्मणश्च ब्राह्मणी च ब्राह्मणो। १. श्रीभिक्षुलिंगानुशासन परवल्लिगाधिकार श्लोक ४