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पाठ ३२ : समास ३ (बहुव्रीहि समास)
शब्दसंग्रह मरिचं, पवितं, कोलकं (काली मिरच) । रुचिष्यः (पोदिना)। भृगं, चोचं, चोलं (दालचीनी)। चविका, चायं (चाय)। राजपलाण्डुः, यवनेष्टः (प्याज) । क्वथिका (कढी) । झर्झरिका (उडद की रोटी) । पिष्टिकः (चावल की पीठी) । पोलिका (एक प्रकार की पूरी, पूआ)। संधानं, संधितं (अचार) । कट्वरं (चटनी, अचार)। भक्तं (भात)। परोठाः (पराँठा) । पूपः (मीठा पूआ) । राज्यक्तं, दाधेयं (रायता) । रोटिका (रोटी)। फुलका (फुलका, पतली रोटी) । किलाट: (पनीर फटे हुए दूध का घनीभूत भाग)। अवदंशः (चाट)। समोषः (समोसा) । पक्ववटिका (पकोड़ी)।
(धातु)--श्रिन्-सेवायाम् (श्रयति, श्रयते) सेवा करना । णीन्प्रापणे (नयति, नयते) प्राप्त करना । टुडुयाचून् –याञ्चायाम् (याचति; याचते) याचना करना । डुपचंषन् -- पाके (पचति, पचते) पकाना । राजन्दीप्तो (राजति, राजते) दीप्त होना। भजन - सेवायाम् (भजति, भजते) सेवा करना।
श्रिन् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ७४) । णीन के रूप श्रिन् की तरह चलते हैं। याच् से भजन तक के रूप वदिङ् की तरह चलते हैं।
बहुव्रीहि समास जिन समास करने वाले पदों में पूर्वपद और उत्तरपद की प्रधानता न हो, अन्य पद प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। बहुव्रीहि समास विशेषण बनता है। विशेष्य के अनुसार इसमें लिंग और वचन होते हैं । समास से पूर्व की स्थिति को विग्रह कहते हैं। विग्रह में यत् शब्द का प्रयोग किया जाता है । यत् शब्द विशेष्य से सम्बन्ध रखता है। यत् शब्द में द्वितीया से लेकर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। बहुव्रीहि समास में जिन शब्दों में समास होता है, वे शब्द 'तत्' शब्द के द्वारा सूचित अर्थ के विशेषण बन जाते हैं। जैसे
द्वितीया-आरूढो नृपो यं-स आरूढनृपो हस्ती। तृतीया-दृष्टो मार्गो येन-स दृष्टमार्गो मुनिः । चतुर्थी-उपहृतः नालिकेरो यस्मै-स: उपहृतनालिकेरः अध्यापकः । पंचमी-निर्गतं भयं यस्मात्–स निर्भयः ।