________________
अर्थ-जिन्होंने तीन गुप्तियाँ, पाँच महाव्रत, पाँच समितियों का उपदेश दिया और नव प्रकार के पदार्थ अच्छी तरह प्रतिपादित किए उन कुंद-पुष्प के समान पुष्पदंत भगवान को मैं नमन करता हूँ।
लोगोवकारी जिणणायगेण, आयारिदं सेट्ठ-खमादि-धम्मा। सम्मत्त-झाणं दसहा पणीदा, तं सीयलं तित्थयरं णमामि ॥10॥
अन्वयार्थ-[जिन] (लोगोवकारी जिणणायगेण) लोकोपकारी जिननायक ने (सेट्ठ खमादि धम्मा आयरिदं) श्रेष्ठ क्षमादि धर्म आचरित किए तथा (सम्मत्तझाणं- दसहा पणीदा) सम्यक्त्व और ध्यान दस प्रकार प्रतिपादित किया (तं) उन (सीयलं तित्थयरं) शीतलनाथ तीर्थंकर को (णमामि) [मैं] नमन करता हूँ।
अर्थ-जिन जिननायक ने स्व-पर हित के लिए श्रेष्ठ क्षमादि धर्म आचरित किए तथा दस प्रकार के सम्यक्त्व और दस प्रकार के ध्यान का प्रतिपादन किया उन शीतलनाथ तीर्थंकर को मैं नमन करता हूँ।
जेणं पणीदो दुवि-मोक्ख-मग्गा, महव्वदो णाम-अणुव्वदो य। अणुव्वदे एगदसे य सेण्णी, सेयंकरो सेयणाहं णमामि॥11॥
अन्वयार्थ-(जेण) जिन्होंने (महव्वदो णाम-अणुव्वदो य) महाव्रत और अणुव्रत (दुवि-मोक्ख मग्गा) दो प्रकार का मोक्षमार्ग (पणीदो) प्रतिपादित किया (अणुव्वदे एगदसे य सेण्णी) अणुव्रत में ग्यारह श्रेणी (प्रतिमा) हैं (सेयंकरो) कल्याण करने वाले (सेय-णाहं) श्रेयनाथ [श्रेयांसनाथ] भगवान को [मैं ] (णमामि) नमन करता हूँ।
अर्थ-जिन्होंने दो प्रकार का मोक्षमार्ग प्रतिपादित किया, जिसमें महाव्रत पूर्ण मोक्षमार्ग है और अणुव्रत अपूर्ण। अणुव्रत में ग्यारह श्रेणी अर्थात् प्रतिमाओं का उपदेश देने वाले कल्याणकारी श्रेयनाथ भगवान को मैं नमन करता हूँ।
इंदादिणा खीरसिंधु-जलेण, बालत्तणे ण्हादो मेरूगिरीए।
कालंतरे पंचकल्लाण-पत्तो, चम्पापुरीए पणमामि वासुं॥12॥
अन्वयार्थ-(बालत्तणे) बाल्यावस्था में [जिनको] (मेरूगिरीए) मेरू पर्वत पर (इंदादिणा) इन्द्रादि ने (खीर सिंधु-जलेण) क्षीर सिंधु के जल से (ण्हादो) अभिषेक किया था [तथा] (कालतरे) कालान्तर में (चम्पापुरीए) चम्पापुरी में (पंचकल्लाणपत्तो) पंच-कल्याण प्राप्त (वासुं) वासुपूज्य भगवान को [मैं] (पणमामि) प्रणाम करता हूँ।
अर्थ-बाल्यावस्था में जिनका मेरू पर्वत पर इन्द्रादि देवों ने क्षीर सिंधु के
चउवीस-तित्थयर-त्थुदी :: 65