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________________ को (णमामि) नमन करता हूँ। अर्थ-मैं पद्म के समान निर्मल, लक्ष्मी के स्थान, केवलज्ञान के घर, सूर्य के समान परमप्रकाशी तथा जनता को सुख के मार्ग पर ले जाने वाले पद्मनाथ देव अर्थात् पद्मप्रभ भगवान को नमन करता हूँ। एगंतधम्मो हि मिच्छत्त-मूलो, रागादि-जम्मो य दुक्खाण हेदू। सम्मत्तदिट्ठी य सुहाण हेदू, सुपासणाहेण वक्खादमेवं ॥7॥ अन्वयार्थ-(एगंतधम्मो हि मिच्छत्त मूलो) एकान्त धर्म ही मिथ्यात्व का मूल है [वह] (रागादि-जम्मो) राग आदि से उत्पन्न (य) और (दुक्खाण हेदू) दुःखों का हेतु है [इसके विपरीत] (सम्मत्तदिट्ठी) सम्यक्त्व युक्त दृष्टि (सुहाण हेदू) सुखों की हेतु है (एवं) इस प्रकार-(सुपासणाहेण) सुपार्श्वनाथ ने (वक्खादं) व्याख्यान किया। अर्थ-एकान्त धर्म ही मिथ्यात्व का मूल है, वह राग आदि से उत्पन्न और दुःखों का हेतु है, इसके विपरीत सम्यक्त्व युक्त दृष्टि सुखों की हेतु है, ऐसा सुपार्श्वनाथ भगवान ने व्याख्यान किया। दिवायरो व्वं जयदप्पयासी, णिसायरो व्वं सियलत्तदायी। दोसाण हत्ता सुह-संतिकत्ता, चंदप्पहं चंद-जिणं णमामि ॥8॥ अन्वयार्थ-(दिवायरोव्वं जयदप्पयासी) सूर्य के समान जगत्प्रकाशी (णिसायरोव्वं सीयलत्तदायी) चन्द्रमा के समान शीतलता देने वाले (सुह-संतिकत्ता) सुखशांति कर्ता [तथा] (दोसाण हत्ता) दोषों के हर्ता (चंद-जिणं) चन्द्रजिन (चंदप्पहं) चन्द्रप्रभु भगवान को (णमामि) नमन करता हूँ। अर्थ-सूर्य के समान जगत्प्रकाशी, चन्द्रमा के समान शीतलता देने वाले, सुख शांति कर्ता तथा दोषों के हर्ता चन्द्रमा के समान सौम्य चन्द्रजिन चन्द्रप्रभु भगवान को मैं बारंबार नमन करता हूँ। गुत्तित्तियं पंच-महव्वदाणि, पंचोवदिट्ठा समिदीइ जेण। सम्मं पणीदा णवहा-पयत्था, तं कुंदपुण्फव्व णमामि पुष्पं ॥१॥ अन्वयार्थ-(जेण) जिन्होंने (गुत्तित्तियं) तीन गुप्तियाँ (पंच महव्वदाणि) पाँच महाव्रत (समिदीइ पंच) पाँच समितियों का (उवदिट्ठा) उपदेश दिया [और] (णवहा-पयत्था) नव प्रकार के पदार्थ का (सम्मं पणीदा) अच्छी तरह प्रतिपादन किया (तं) उन (कुंदपुष्फव्व) कुंद-पुष्प के समान (पुष्र्फ) पुष्पदंत भगवान को (णमामि) नमन करता हूँ। 64 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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