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अन्वयार्थ-(वित्तेण रक्खदे धम्मो) धन से धर्म रक्षित होता है (विज्जा जोगेण रक्खदे) अभ्यास से विद्या रक्षित होती है (लज्जाए रक्खदे सीलं) लज्जा से शील रक्षित होता है [तथा] (णारीए रक्खदे गिह) नारी से घर रक्षित होता है।
भावार्थ-धन से धर्म की, अभ्यास करने से विद्या की, लज्जाशीलता से शील की और सुशीला स्त्री से घर की रक्षा होती है। इनके बिना ये नष्ट हो जाते है।
किससे क्या नष्ट होता है दालिद्दणासणं दाणं, सीलं दुग्गदि-णासणं।
अण्णाण-णासिणी पण्णा, भावणा भवणासिणी131॥ अन्वयार्थ-(दालिद्द णासणं दाणं) दान दारिद्र्य नाशक है (सीलं दुग्गदि णासणं) शील दुर्गति नाशक है (अण्णाण-णासिणी पण्णा) प्रज्ञा अज्ञान नाशिनी है [तथा] (भावणा भवणासिणी) भावना भवनाशिनी है।
भावार्थ-दान देने से दरिद्रता का नाश होता है, शील-ब्रह्मचर्य आदि व्रतों का पालन दुर्गति का नाश करने वाला है, निरन्तर ज्ञानाभ्यास तथा कर्मों के क्षयोपशम से उत्पन्न प्रज्ञा अज्ञान-नाशिनी है और हमेशा शुभभाव-शीलता भवभ्रमण का नाश करने वाली है।
ऐसी बातें प्रकाशित नहीं करना चाहिए अथणासं मणोदावं, गेहिणीचरिदं तहा।
वंचणं अवमाणं णो, मदिमंतो पयासदे ॥132॥ अन्वयार्थ-(अत्थणासं मणोदावं) अर्थनाश, मनो-ताप (गेहिणीचरिदं तहा) स्त्री का चरित्र (वंचणं) वंचना (य) और (अवमाणं) अपमान (मदिमंतो) बुद्धिमान (णो पयासदे) प्रकाशित नहीं करते हैं।
भावार्थ-धन का नष्ट हो जाना, मन का संताप, अपनी स्त्री का खोटा चरित्र, वंचना-ठगे जाने की कथा तथा पूर्व में हुए अपने अपमान को बुद्धिमान लोग प्रकाशित नहीं करते हैं अर्थात् दूसरों को ये सब बातें नहीं बताते हैं; क्योंकि ये बातें दूसरों को बताने से लाभ कुछ भी नहीं होगा, उल्टे निन्दा और बदनामी ही हाथ लगेगी।
इनके समान ये ही हैं णत्थि मेहसमं णीरं, णत्थि अप्पसमं बलं।
णत्थि चक्खुसमं तेयं, णत्थि धण्णसमं पियं133॥ अन्वयार्थ-(णत्थि मेहसमं णीरं) मेघ के समान पानी नहीं है (णत्थि अप्पसमं बलं) अपने बल के समान बल नहीं है (णत्थि चक्खुसमं तेयं) आँख के 174 :: सुनील प्राकृत समग्र