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वड़वानी के उत्तम भाग को प्राप्त हुआ ।
रु-सिस्स - मंगलमय - संगमो
गुरु
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साहस्स णेत्त-पउमेहि सुआगदम्हि अग्गेसरा हु वडवाणि- सुभाग - भागी । इंदोर - आदि- बहुभाग-जणा जज्जा वच्छल्ल पीदि-मिलणेण पसण्ण - भूदा ॥11॥
वात्सल्य मूर्तियों (विमलासागर एवं महावीरकीर्ति) के प्रेरित पूर्ण मिलन से सभी सहस्त्रों पद्म नयनों से स्वागत में अग्रेसर वड़वानी वासी इन्दौर आदि के बहुत से लोग प्रसन्न भूत जय जयकार करते हैं ।
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गुण-बिंब-पडिबिंब - जिणाण अग्गे साहू वि अज्जिग-गणा गुरुदंसणेणं । वच्छल्ल-गंग-जल- रासि - णिमग्ग-भूदा चाउव्वमास- महवीर - सुकित्ति - कित्ती ॥12 ॥
इधर मनोज्ञ बिंब - प्रतिबिंब जिन प्रतिमाओं के आगे सभी साधु, आर्यिकाएँ गुरुदर्शन से वात्सल्य रूप गंगा की जल राशि में गोते लगाते हुए आचार्य महावीरकीर्ति की कीर्त्ति युक्त हो जाते हैं ।
णाणज्झाण- तवो-रत्तो
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णाणं च झाण- तवकित्ति-महा हु कित्ती आणा हु पव्व-इध-सम्मदि- सम्मदिं च । पत्तेदि णीरस-रसी उववास - वासी अज्झेदि सुत्त - सुद-सत्थ - पुराण- आदिं ॥13 ॥
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वास्तव में आ. महावीरकीर्ति की कीर्ति महान थी विलक्षण थी । विमलसागर जी की आज्ञा पूर्वक सन्मतिसागर सन्मति की ओर अग्रसर हुए। वे नीरसी, रसत्यागी, अनेक उपवास को स्थान देने वाले सूत्र, श्रुत, शास्त्र एवं पुराण आदि का अध्ययन करते हैं।
88 :: सम्मदि सम्भवो