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वासंति माह कुसुमाण बहुल्ल माहो अक्खेय अक्खय सुदाण कुणेदि णंदं। णं आदि इक्खुमहदाण कुणंत-माला
मालं णएदि जयइगब्भ महुल्ल लालं॥30॥ पूर्व में जब वासंतीमास कुसुमों की बहुलता का माह था तब आत्मा के अक्षय स्वरूप अक्षय दान को वह जयमाला करती है। मानो आदिप्रभु के इक्षुदान को करती हुई यह जयमाला गर्भ के माधुर्य से लाल की जयमाला को ही धारण कर लेती है।
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जाणेदि णो हु समयं सुद-गब्भ-कालं मासं च पच्छ जणणी सम सासु-सासे। लज्जावदी हु जयमाल-गदी पमाणी
जाएज्ज सोम्ममुह-हास-पहास भावी ॥31॥ वह समय को सुत के गर्भकाल को नहीं समझ पाती है। माह पश्चात् जननी समा सासु जब आस्वस्त होती तब लज्जावती जयमाला की गति ही यह प्रमाणित कर देती है। चन्द्रमुख पर हास-परिहास मानो यह ऐसा संकेत देती है।
32 चंदामही वि कमला णणिदा वि सामा मामिं च माल जयमाल सुगम्म लालं। जाणेविदूण परमाहलिदा भवेंति
सव्वत्थ णंद अदिणंद पभासमाणी॥32॥ चन्द्रमुखी, कमला एवं श्यामा जैसी गंदे भाभी (भौजी) के गर्भकाल के लाल से मानो माला माल जयमाला की सर्वत्र खुशी अति आनंद की प्रभाषमाणी ऐसा जानकर अति प्रसन्न होती हैं।
33 वारे हुणं च सहणाइ-सुसद्द माला तूरिज्ज तूरिय रवं कुहु कोकिला वि। कुव्वेज्ज माण-बहुमाण जयं जयं च
होहिज्जदे हु पुरवाल कुले सुपुत्तो॥33॥ द्वार पर मानो शहनाई के मधुरशब्द होने लगे, तुरही, रमतूला के रव (शब्द) तथा कोइल की कुहु कुहु बहुमान पूर्वक जयमाला के गर्भ में आगत पुत्र को बधाई दे