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जो अणतो अणंतो हु, चदु अणंत दंसगो।
सव्वसेणस्स लालो सो, सव्व जसा अउज्झए॥22॥ अयोध्या के राजा सर्वसेन का लाल सर्वयशस्वी इसलिए है कि वह सर्वयशा से जन्म लेता है वही अनंत चतुष्टय का दर्शक अनंत गुणधारी अनंतप्रभु बना।
23 रदणपुर-भाणुस्स, सुव्वदाए सुधम्मगो।
धम्मं च सम्मदिं दाणं, धम्मादु धम्म-णायगो॥23॥ रत्नपुर के भानु एवं सुव्रता का पुत्र उत्तम धर्मज्ञ हुआ वह धर्म एवं धर्म रूप सन्मति दान को धर्म से (रत्नत्रय धर्म हो) करता है तभी तो धर्मनायक कहलाया।
24 सव्वत्थ संति संती हु, विस्ससेणस्स एरए।
हत्थिणापुरए संती, इक्खागु कुलए अवि॥24॥ इक्ष्वाकुकुल के विश्वसेन राजा एवं रानी एरा के शान्ति प्रभु सर्वत्र शान्ति दायक बनते हैं। वे हस्तिनापुर के शान्ति, शान्ति ही शान्ति करते हैं।
25 सूरसेणस्स कुंथू जो, कुंथूणं सव्वणायगो।
मादु सिरिमदीणंदे, सव्वेसिं सुहदायगो॥25॥ राजा सूर्यसेन का पुत्र कुन्थु जहाँ मातु श्रीमती को आनंदित करता वहीं कुंथुओं (सभी प्राणियों) का सर्वनायक एवं सुखदायक बन जाता है।
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मित्ता मित्तगहा णिच्चं, सुंदसणं च दंसणं।
किच्चा जम्मेदि सम्मो हु, अरहो अर हेदुणो॥26॥ सुदर्शन के दर्शन में प्राप्त मित्रभूता मित्रा, जगत पूज्य अरह को जन्म देती है वह अर-अरह सम्यक्त्व का कारण बनता है।
27 मिहिला-णिव-कुंभो तु, सव्वत्थ मल्लि-मल्लए।
पहावदी-सुहत्थादो, मल्लि-मल्ली सुणायगो॥27॥ मिथिला का राजा कुंभ सर्वत्र अपने बल से प्रसिद्ध था। वही प्रभावती के पुत्र मल्लिनाथ के कारण वह कुंभ मल्लि का नायक हो गया।
सम्मदि सम्भवो :: 27