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लक्ष्मी तो लक्ष्मी है वह महासेन को पाकर अतिधनी महादानी तब कहलाई जब उसने चन्द्र की तरह सम्यक्, करावली वाले चन्द्र नाथ को जन्म दिया।
17 सुग्गीवस्स रामाए, पुष्फो-पुप्फ पफुल्लिदो।
काकंदीणंदए संगे, लोगालोग-पगासगो॥17॥ सुग्रीव और रामा के कारण लोकलोक प्रकाशक, पुष्पदंत रूपी पुष्प प्रफुल्लित हुआ तब काकंदी नहीं, अपितु तीनों लोक को प्रकाश प्राप्त हुआ।
18 सीदलो सीदलं दाणं, जम्मेदिपुर-भद्दले।
णंदा-दिढरहं सव्वे, जगे सदा हु णंदणं॥18॥ प्रभुशीतल तो शीतलता के दान के लिए भद्रलपुर में जन्म लेते हैं। वे माता नंदा और दृढ़रथ राजा एवं सम्पूर्ण लोक में आनंद प्रदान करते हैं।
19 सेयंसादु जगे सेयो, जाएदि विण्हु-वेणुए।
सिंहपुरी-विराजेज्जा, वसुहा-सेय-कारिणी॥19॥ श्रेयांस प्रभु के जन्म से सम्पूर्ण लोक में श्रेय (कल्याण) हुआ। वे माता वेणु और राजा विष्णु के कल्याणकारी पुत्र इस वसुधा एवं सिंहपुरी को मानो श्रेय हेतु ही एवं आत्मकल्याण हेतु ही आए थे।
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चंपाए वासुपुज्जो वि, वसुपुज्जो हवे जगे।
विजयाए वसुं णंदं, दाएज्ज जिणसासणं॥20॥ चंपा में वसुपूज्य हुए, उनका पुत्र वासुपूज्य जगत में पूज्य हुआ वे विजया के लाल वसु (वसुधा) के आनंद के लिए ही मानो जिन शासन को दिखलाते हैं।
21 विमलो विमलो णाहो, सतार कंपिला-सुदो।
किदवम्मा जयस्सामा जम्मेज्ज विमलो सुधी॥21॥ शतार आगति में कंपिला नगरी का यह सुत कृतवर्मा एवं जयश्यामा से उत्पन्न विमलसुधी विमलनाथ मल रहित (कर्म रहित) बने।
26 :: सम्मदि सम्भवो