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________________ छठा अध्याय पन्यास-पद अहमदाबाद मेंअहमदाबाद जैन संघ के अपार आग्रह के कारण मुनीश्वर श्री आनन्दसागरजीने चौदहवा चातुर्मास अहमदाबाद में किया । केतकी पुष्प यह नहीं कहता कि मैं यहाँ हूँ. लेकिन उसकी सुगन्ध की बहार ही कह देती है कि केतकी पुष्प यहाँ है। अब इन मुनीश्वर की ख्याति केतकी कुसुम के समान हो गई थी। सांसारिक ताप से संतप्त श्रोता दूर दूर से उनकी वाणी सुनने और उस ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने आते थे । आते समय उनके हृदय उद्वेग के भार से भरे मालूम होते थे और जाते समय वाणी-गंगा में स्नान कर फूल-से हलके बने होते थे । अब मुनीश्वर की सेवा में शिष्य भी थे। कतिपय आत्माओं ने सेवा के हेतु अपना जीवन समर्पित किया था । आगमधर न बन सकें तो न सही, परन्तु आगमधर के चरणों की सेवा का लाभ ले कर कृतार्थ बने तो भी अहे। भाग्य, ऐसा सोच कर बहुत से भाग्यवान् सांसारिक जीवन को त्याग कर इन मुनीश्वर की सेवा में सदा के लिए आ रहे थे। ___ अमोघ-देशना (उपदेश) . वर्षा ने अमृत-बिन्दु बरसाना शुरू किया-+प्रीष्म के ताप से तप्त तृषातुर भूखी धरती शीतल और तृप्त हुई । दूसरी ओर कषायों के ताप
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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