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जनता के प्राणस्वरूप आगमों की सुरक्षा के लिए उन्हें भारतभर में सुप्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र तथा सूर्य पूर में श्रमणभगवान महावीर परमात्मा के २५०० वर्ष के शासनकाल में अभूतपूर्व श्री वर्धमान जैन भागममदिर तथा श्री वर्धमान जैन ताम्रपत्रागम मंदिर का निर्माण कर उनमें क्रमशः शिलात्कीर्ण तथा ताम्रपत्रारूढ करवाया। आगम-भगवान जिनेश्वर की वाणी-इस कलिकाल में भी जिनेश्वर भगवान के विरहकाल में ससारसमुद्र पार करने में नौका समान सहायक है। सुदेव-मुगुरु तथा सुधम रूपरत्नत्रयी की अखंड आराधना के लिये आगम अति आवश्यक हैं । यही आगम प्राचीन काल में कंठस्थ रहते थे, (भद्रबाहुस्वामीकी प्रतिकृति देखिये) महान शक्तिशाली गीतार्थ आचार्य भगवान तथा समर्थ विद्वान मुनिवर ऐसी अप्रतिम शक्ति के स्वामी थे। कालके विषम प्रवाह में पूर्वस्थिति न रहने से कालान्तर में समय के पारखी गीतार्थ पूज्य देवर्द्धिगणि-क्षमाश्रमणने आगोको लिपिबद्ध किया! (देवद्धिंगणि-क्षमाश्रमणकी प्रतिकृति देखिये) ये आगम कई सदियों तक ताडपत्रों तथा हस्तलिखित पाथियों में सुरक्षित रहे । वर्तमान मुद्रणकला के युग में आग़मोद्धारकजीने आगमों का संपूर्ण शुद्ध संशोधित करके अच्छे टिकाउ लेजर पेपर पर छपवाकर ४५ मूल आगमों की पेटिया बड़े बड़े शहरों में रखवायीं ( आगमाद्वारकश्रीकी प्रतिकृति देखिये ) आपने आगम आदि शास्त्रोंकी वाचनाएँ निम्नलिखित शहरों में दी।
पाटण
अमदावाद
पालीताणा -
रतलाम
सुरत . , -
कपडवंज