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________________ २९ यहाँ तीर्थाधिराज श्री सिद्धाचलजी की शीतल छाया तथा देवगुरुधर्म के प्रभाव से आनंद मंगल है और आप श्री संघ के भी आनंद मंगल की कामना करते हैं। विशेष में सविनय निवेदन है कि हमारे परम पुण्योदय से परमपूज्य आराध्यपाद, आगमवाचना दाता, जैनागमपारदृष्टा, सकलागमग्रन्थादि अनेक ग्रंथ संदर्भ संशोधक, सिद्धप्रभाव्याकरणादि अनेक ग्रन्थ रचयिता, श्री जैन शासन संरक्षणैकबद्धलक्ष्या आगमोदय समित्यादि अनेक संस्था संस्थापक, शैलाना नरेशप्रतिबोधक, आगमोद्धारक, प्रातः स्मरणीय, आचार्यदेव श्रीमद् आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की अपूर्व आगम भक्ति तथा तीर्थ भक्ति किसी को अविदित नहीं है। शासन प्रभावनामय उपदेशामृत से भावित हुए सुश्रावकवर्ग ने, जिस के कांकड कंकड पर अनन्त सिद्ध गति को प्राप्त हुए ऐसे परम पुनीत श्री सिद्धाचल तीर्थाधिराज की तलहटी में श्री वर्धमान जैन आगमम ंदिर संस्था स्थापित की है, और उस में उनके उपदेश से ही अभूतपूर्व ज्ञान - दर्शन - चारित्र के प्रतीक स्वरूप 'श्री सिद्धचक्र गणधर मंदिर' तथा 'श्री भ्रमणसंघ पुस्तक संग्रह' का निर्माण किया गया है । परम तारक परम पूज्य आचार्य देव 'हा अणाहा कहीं हुंता न हुतो जो जिणागमेा' – यदि जिनेश्वर भगवान् का आगम न होता तो हाय ! हम जैसे अनाथों का क्या होता १- - इस पद का निरंतर स्मरण करते हुए सकल आगम को संगमरमर की शिलाओं में
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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