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________________ ૨૮ श्रीसवाय सदा सदागमवरं ज्ञानादिरत्नाकरमालोक्यागममन्दिरे शुचिधियः सन्तु प्रसन्नाः सदा ||३|| अर्हन्तो मगवन्त इद्वगुणदाः सिद्धाः सदाचारिण आचार्या वरपाठकाः श्रुतधरा मोक्षोद्यताः साधवः । ज्ञान चरणैस्तपोभिरुदिता सेव्येयमाप्तोदिता शश्वत्सौख्यकरी पदावलिरिह श्रीसिद्धचक्राश्रिता जिणबिंबपइटुं जे करति तह कारर्वेति भत्तीए । अणुमन्नंति पइदिणं सव्वे सुहभाइणेो हुति दव्वं तमेव मन्ने जिबिंब पट्टणाहकजेसु । जं लग्गई त सहलं दुग्गइजणणं हवइ सेसं योsदादागमवाचना प्रशमिनां येनाद्धृता आगमा ज्ञानं यस्य सम्यशास्त्रविषयं चारित्रमत्युज्ज्वलम् । यो राजप्रतिवाद मुनिवरः सद्धर्मदेष्टा सदा श्री आनन्द पयोनिधिर्विनयते नित्यं स सूरीश्वरः 11811 11411 ॥६॥ 11911 स्वस्ति श्री परमपावन मंगलकारी सर्व तीर्थकर भगवानों तथा परमतरणतारण जैनागमको नमस्कार करके श्री जिनचत्य - उपाश्रयादि धर्मस्थानों से विभूषित महाशुभस्थाने. देवगुरुभक्ति कारक नमस्कार महामंत्र स्मारक सर्वज्ञ शासनोपासक, श्रमणोपासक श्रीमान् श्रेष्ठवर्य आदि संघसमस्त येाग्य श्री पालीताना नगर से श्री वर्धमान जैन आगम दिए संस्था का सादर प्रणाम स्वीकृत हो ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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