SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमधरसरि १६३ स्वागत यात्रामें सूरत के सत्तर बड़े बेंड थे। सब 'स' अक्षर की कुभराशि का संमिलन हुआ था। सागरजी, सूरत, सुस्वागत, सत्तरको आयु, सत्तर सत्तर सामग्रियों का सुन्दर समूह और शासन के सरताज की सुहावनी शोभायात्रा। गहुँली या रत्नावली ? कदम कदम पर गहुली होती थी। हर डग पर पुण्यवतिया स्वागत करती थीं। कोई भाग्यवती शुद्ध अखंड अक्षत वारती थी तो काई पुण्यवती सोने चादी के फूल वारती थी। कोई कोई सौभाग्यवती सच्चे मोतियों के समूह वारती थी। यह सौभाग्यवतो कहती थी कि अन्य धर्म गुरुओं को सोने से तोला जाता है, देशनेताओं को रुपयों की थैली अर्पित होती है, तो हमारे गुरु पर सच्चे मोती क्यों नहीं वारे जाय । अरे ! एक पुण्यवती ने मणि, माणिक्य, पन्ना, नीलमणि, गोमेदक प्रवाल, हीरे, मुक्ता आदि रत्नों से भरी अंजली से उन्हें बधाया। उस समय उस के मुख पर अपने धर्म पिता या धर्मदाता का स्वागत करने के आनन्द की तरंगें उठ रही थीं। दूसरे प्रहर के प्रारंभ में हरिपुरा से इस स्वागतयात्रा का प्रारंभ हुआ था, और तीसरे प्रहर की पूर्णाहुति के बाद गोपीपुरा में परिसमाप्ति हुई। यह स्वागत-यात्रा पूरे दो प्रहरी से अधिक समय शहर में घूमी थी। उपाश्रय में आने पर धर्म देशना (धर्मोपदेश) के श्रवण के वाद इस शोभायात्रा का विसर्जन हुआ था। पूज्यपाद आगमाद्धारक श्रीजी का चातुर्मास भी यहाँ हुआ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy