SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीसवा अध्याय सागरजी और सूरत प्रवेश-यात्रा . पू. आगमेद्धारकरी और पू० सागरजी महाराज के नाम से ख्यातिप्राप्त महात्मा आज सूरत में पदार्पण करनेवाले हैं। बाहर से आनेवाले को अनायास ही ऐसा प्रतीत होता कि सूरत में दर्शनीयता पूज्य सागरजी महाराज के चरण कमलों के शुभागमन से आती है जैसे कि दूध में मधुरता ईक्षुजनित शर्करा से आती है, अर्थात् पू० सागरजी और सूरत का सम्बन्ध दूध-शक्कर का सा था। पूज्य सागरजी महाराज केवल सूरत के या सूरतियो के नहीं थे, वे सब के थे परन्तु सूरतवासी तो सागरजी के ही थे। ये महात्मा आज पधार रहे हैं परन्तु उनके अपूर्व स्वागत की तैयारियाँ कितने ही दिनों से हो रही थी। पूज्य श्री की स्थूल देह का सत्तरवें वर्ष में प्रवेश हो चुका था। अब ये महात्मा ज्ञानस्थविर, पर्यायस्थविर तथा वयस्थविर हुए थे, सब तरह से पूर्ण स्थविर थे, शासन के सरताज़ थे। सूरतवासी ऐसा महान स्वागत करना चाहते थे जो पूज्यश्री की पूज्यता के अनुरूप हो और शासन की शोभा बढ़ानेवाला हो। इस के लिए आत्मीयतापूर्ण तैयारियाँ हे। चुकी थी। सब के हृदय हर्ष से उछल रहे थे।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy