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________________ मागमधररि गुजरात की भूमि पर पूज्यपाद भागमोद्धारक भाचार्य महाराज विचरण करते करते मायणी पधारे। विक्रमकी वीसवीं शताब्दी का समय जबरदस्त क्रान्ति का युग कहा जा सकता है । यूरोपीय कूटनीतिज्ञोने कूटनीतिके प्रयोग कभी के शुरू कर दिये थे। उन्होंने मुसलमानों को मीतर से उकसा कर उनके द्वारा मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाने के प्रयत्न करवाये। दूसरी ओर वे पादरियों तथा मिशने के द्वारा सत्ता और धन के जोर से इसाई धर्म का प्रचार करवाते थे। इन दोनों के बीच जैन और वैदिक धर्मका ह्वास किया जा रहा था । कतिपय माय-संस्कृति के रक्षक विद्यावानों को इस कुटिल चाल का पता लग गया । फलतः 'हिन्द महासभा नामक संस्था स्थापित हुई।----- विचित्र हवा ___ दूसरी ओर यूरोपीय कुटनीतिज्ञों ने धर्म-सुधार की एक विषली वायु पैदा की थी। देश के बहुत से युवक उस से आकर्षित हो चुके थे। जैन युवक भी इस विषली हवा से अलिप्त नहीं रह सके, उन पर इस वायु का असर हुआ। परिणामतः यह वर्ग देवद्रव्य, बालदीक्षा, दीक्षाप्रतिबंध, मदिर, मूर्ति, ज्ञान, उपधान, उद्यापन, उत्सव, साधर्मिक वात्सल्य आदि के सम्बन्ध में शास्त्रीय बातों को र धकेल . कर मनमानी बातें करने लगा। ऐसी विचारधारा धारण करनेवाले और जैन -- कुल में जन्म ले कर जैन शासन को डगमगाने वाले लोगों की एक. मडली एकत्रित
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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