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________________ तेरहवाँ अध्याय दिगंबरों का उपद्रव अवसर्पिणी काल के प्रभाव से श्वेतांबर और दिगंबर - जैन धर्म के जब से ये देा विभाग हुए तब से जैन धर्म की अवनति होती रही है, यद्यपि बीच बीचमें कई बार उन्नति भी हुई है जो कि सोये हुओं को जाप्रत करे ऐसी होती थी, परन्तु आगे बढ़ानेवाली नहीं । मेवाड़ के महान् तीर्थ श्री केशरियाजीका झगड़ा कई वर्षो से चला आ रहा है वर्तमान में भी ऐसा नहीं कह सकते कि झगड़ा पूर्णत: मिट गया है । यहाँ की श्री ऋषभदेव भगवान की मूर्ति श्वेताम्बर और दिगंबर ये दा विभाग बनने से पहले की है । इस कारण दिगंबर लोग इस मंदिर और मूर्तिका अधिकार अपने हाथ में लेना चाहते थे जब कि वर्षो से इसका अधिकार और व्यवस्था श्वेतांबर सम्हालते थे । श्वेतांबरों की शारीरिक और प्रादेशिक शक्ति घटने पर दिगंबर लोग इस पर अपना हक जमाने का निंदनीय प्रयास किया करते थे । इस जिनमंदिर का ध्वज-दंड जीर्ण हो गया था अतः जीर्णोद्वार कर नया चढ़ाना था, परन्तु वक्र और जड़ दिगंबर लोग किसी तरह यह काम नहीं करने देते थे । आखिर पूज्य आगमेाद्धारकीने अनेक विक्षेपों के बीच उपसर्ग सहन करके यह कार्य सम्पन्न किया, और वहाँ भी शासन - ज्योति जगमगाती रखी ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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