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________________ -- आगमधरसरि • धर्म है। हमने जिनचैत्य परिपाटी की आज्ञा का पालन किया परन्तु जिनागमों का ? ___"आज हमारे अज्ञान और अकर्मण्यता के कारण पूज्य आगमों की कैसी दुर्दशा हो रही है इस के लिए भी एक महत्त्व का कार्य कर लेना आवश्यक हैं। आज अनिवार्य परिस्थितियों को लक्ष में रखते हुए आगों का मुद्रित करवाना अनिवार्य हो गया है। पूजनीय श्रमण संघ की स्मरण शक्ति एवं लेखन शक्ति कम हो गई है, अतः - मुद्रण करवा लेना अनिवार्य है। "मुद्रण पद्धति की अपेक्षा लेखन पद्धति बहुत निर्दोष और उत्तम है। लेखन से भी स्मरण उत्तमोत्तम है, परन्तु भवसर्पिणी काल के प्रताप से मुद्रण में दोष होते हुए भी उसका आश्रय लेना पड़ता है । यह तो न्यावहारिक बात है कि जहा लाभ अधिक हो वहाँ थोड़ा सा नुकसान गौण बन जाता है । अतः विशेष लाभ के कारण आगमप्रन्थों का मुद्रण कराना आवश्यक हो गया है । इस के लिए योग्य अवसर पर भावना रखना ।" पूज्य मुनीश्वर की यह विशेषता थी कि वे किसी काम के लिए बहुत दबान डालने की शैली में कुछ नहीं कहते थे । संक्षेप में उतना ही कहते जिस से सब को अपने कर्तव्य का ज्ञान हो जाय । श्रोताओं को कितना करना चाहिए यह उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर था । एक लाख रुपये मुनीश्वर की सुधारस के समान वाणी सुन कर श्रोताजन मंत्रमुग्ध हो गये । व्याख्यान पूर्ण हुआ । पूज्य पाद मुनीश्वर 'सर्वमंगल...' बोलने वाले ही थे कि एक पुण्यवान ने खड़े हो कर विनम्रतापूर्वक कहा
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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