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आगमधरसूरि
स्वागतम् आज फिर अध्यात्मशील, वचनसिद्ध तथा अद्वितीय विद्वान् दिव्य मुनीश्वर सूरत के सीमान्त में पधारे हैं। वनपालक ने श्री संघ को शुभ समाचार दिये । सूरत की खुशमिजाज जनता इस समाचार से और भी खुश हुई। सूरती लोग बडे भावुक हैं। उनमें योगी पुरुषों का आनंद लेने की और भोगी पुरुषों का आनंद लेने की भी कला है।
स्वागत की तैयारिया तो बहुत पहले से चल रही थीं। सूरत के भोजन की तरह यहाँ के 'सांबेले' भी प्रसिद्ध हैं। 'सांबेला' क्या है ? देखे बिना इसका सही ख़याल आना कठिन है। इक्का, शिकरम, तांगा, खुली मोटर, लारी आदि को फूल, रेशमी पट, कमखाब, रंग बिरंगी कपड़े, जरी, फूल, अशोक के पत्तों आदि से सजाया जाता है। सजधज कर इन्हें जब जलूस में लाया जाता है तब देखनेवालों को पता भी नहीं लगता कि यह रथ है या मोटर, इक्का है या नाव, तांगा है या बैलगाड़ी ? इस विशिष्ट रचना को 'सांबेला' कहते हैं। एक सांबेला सजाने में सौ से हजार रुपये तक या उस से अधिक भी व्यय होता था। इस स्वागत यात्रा की एक विशिष्टता यह थी कि इस में सूरत के सारे बैंड, ढाली तथा शहनाई-वादक शामिल हुए थे।
अनेक अलबेले सांबेलों की सजधज के साथ स्वागत यात्रा प्रारंभ हो कर ध्वजा, तोरण, पताका मेहराब आदि से सुसज्जित राजपथ से होती हुई जिनमन्दिर पहुंची, जिनमन्दिर के दर्शन कर के उपाश्रय पहुंची।
उपाश्रय में मांगलिक व्याख्यान हुआ। सूरत के लोग मुनीश्वर की सुमधुर देशनारूपी मुरली से ऐसे डालने लगे जैसे . मुरली के मधुर स्वरों से फणीधर डालते है। प्रथम दिन की दिव्य वाणी से ही सूरत