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"परमात्मा का जो शुद्ध, बुद्ध, वीतरागतामय स्वभाव है, वही मेरा स्वभाव है। कर्मों के आवरण ने मेरे । स्वभाव को ढक रखा है, दृढ़ संकल्प के साथ मुझे आवरण दूर कर अपना शुद्ध स्वरूप प्राप्त करना है। काम-क्रोधलोभ-मोह मेरा स्वभाव नहीं है। मैं दृढ़ता से निश्चय करता हूँ कि कैसी भी परिस्थिति हो, मुझे काम, क्रोध, लोभादि के अधीन नहीं होना है। जब भी प्रसंग आएगा मैं दृढ़ता से विकारों का मुकाबला करूँगा।" -आचार्य श्री हस्ती (54वें जन्म-दिवस पर)
समस्त पापों, तापों और सन्तापों से मुक्ति पाने का मार्ग है- अनुभव दशा को जागृत करना, स्वानुभूति के सुधा-सरोवर में सराबोर हो जाना, निजानन्द में विलीन हो जाना, आत्मा का आत्मा में ही रमण करना। जीवन में जब यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो आत्मा देह में स्थित होकर भी देहाध्यास से मुक्त हो जाता है और फिर कोई भी सांसारिक सन्ताप उसका स्पर्श नहीं कर सकता। जगत् की कोई भी वेदना उसे व्याकुल नहीं बना . सकती।
-आचार्य श्री हस्ती
• जीवन में जो भी विषाद, दैन्य, दारिद्र्य, दुःख और अभाव है, उस सबकी अमोघ औषध सामायिक है। सामायिक से समभाव की प्राप्ति होती है। समभाव वह लोकोत्तर रसायन है, जिसके सेवन से समस्त आन्तरिक व्याधियाँ एवं वैभाविक परिणतियाँ नष्ट हो जाती हैं। आत्मारूपी निर्मल गगन में जब समभाव का सूर्य अपनी समस्त प्रखरता के साथ उदित होता है तो राग, द्वेष, मोह आदि उलूक विलीन हो जाते हैं। आत्मा में अपूर्व ज्योति प्रकट हो जाती है और उसके सामने आलोक ही आलोक प्रसारित हो उठता है।
-आचार्य श्री हस्ती
अगर आप अपने आभ्यन्तर में रही अमोघ शक्ति, जो प्रच्छन्न रूप से विद्यमान है, उसे पहचानना चाहते हैं, प्रकट करना चाहते हैं, तो शुद्ध और एकाग्र मन से नित्यप्रति नियमित रूप से स्वाध्याय कीजिए। मन के कलुष या क्लेश को मिटाने में, समाज में व्याप्त बुराइयों, बीमारियों को समाप्त करने में, मानसिक दुःखों को मूलतः विनष्ट करने में और आत्मा पर लगे कर्ममैल को पूर्णतः ध्वस्त कर आत्मा को सच्चिदानन्द शुद्ध स्वरूप प्रदान करने में सक्षम अमोघ शक्ति स्वाध्याय ही है। अतः स्व-पर कल्याणकारी स्वाध्याय का अलख जगाइए।
-आचार्य श्री हस्ती
सामायिक मुख्यतः आचार-प्रधान साधना है। पर यह आचार क्रियाकाण्ड बनकर न रह जाये, अतः । इसके साथ ज्ञान अर्थात् स्वाध्याय का जुड़ना आवश्यक है। आप इस बात का ध्यान रखें कि आपकी सामायिक दस्तूर की सामायिक न होकर साधना की सामायिक हो। लौकिक कामनाओं से प्रेरित होकर सामायिक का अनुष्ठान न किया जाय, वरन् कर्मबंध से बचने के लिए, संवर की प्राप्ति के लिए सामायिक का आराधन करना चाहिए।
-आचार्य श्री हस्ती