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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
भी सुयोग्य शिष्य को प्राप्त कर प्रसन्न थे एवं उत्साहपूर्वक नित्य नव ज्ञानाराधन कराते थे। वे बालक की विलक्षण प्रतिभा, विनयशीलता एवं स्मरणशक्ति से बड़े प्रभावित हुए। रुचिपूर्वक अध्ययन करने के कारण बालक हस्ती को
भी अल्पकाल में ही महती उपलब्धि हुई। उन्होंने पीपाड़ में स्वामी श्री हरखचन्द जी म.सा. से एक मंत्र पाया था, | जिसका उन्होंने जीवनभर उपयोग किया
खण निकम्मो रहणो नहीं, करणो आतम काम ।
भणणो गुणणो सीखणो, रमणो ज्ञान आराम ॥ पण्डित जी से अध्ययन करते समय विक्रम संवत् १९७७ (सन् १९२०) में स्वामी जी श्री हरखचन्द म.सा. के अजमेर चातुर्मास के सुअवसर पर उन्हें स्वामी जी का यथेष्ट मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ। यहाँ पर शिक्षार्थी हस्ती ने सन्त-चरणों में रहकर रात्रि में चौविहार का त्याग प्रारम्भ कर दिया तथा आठवाँ वर्ष लगते ही कच्चे पानी के सेवन का भी त्याग कर दिया।
पंडित रामचन्द्र जी शिक्षार्थी श्री हस्ती को लघुसिद्धान्त कौमुदी, शब्दरूपावली, धातुरूपावली और हिन्दी भाषा की शिक्षा देते, साथ ही अमरकोष का अध्ययन भी जारी था। प्रातः, मध्याह्न और सन्ध्यावेला में स्वामी जी महाराज ने श्री हस्ती को स्तोकसंग्रहों के अतिरिक्त दशवैकालिक आदि सूत्र पढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। रात्रि के समय भी स्वामी जी महाराज रोचक एवं शिक्षाप्रद कथा-कहानियों के माध्यम से धार्मिक सुसंस्कारों को सबल और सुदृढ़ करने का प्रयास करते। धीरे-धीरे श्री हस्ती में कविता, कथा आदि लेखन की प्रतिभा प्रस्फुटित होने लगी। आपने अनेक स्तोकों तथा स्तोत्रों को कंठस्थ कर ज्ञानवर्धन किया। वैराग्य काल में ही आपने प्रतिक्रमण, २५ बोल, नवतत्त्व, लघुदण्डक, ९८ बोल का बासठिया, १०० बोल का बासठिया, समकित के ६७ बोल, समिति गुप्ति का थोकड़ा, आहारपद, संज्ञापद, इन्द्रिय पद, श्वासोच्छ्वास, रूपी-अरूपी, पाँच देव, ६ भाव, गति-आगति, अवधिपद, धर्माधर्मी, सुत्ताजागरा, पच्चक्खाणा-पच्चक्खाणी २० बोल, २३ मोक्ष जाने के बोल, १३ बोल-भवि द्रव्य आदि, साधु के सुख आदि थोकड़े कण्ठस्थ कर लिए थे। अजमेर के सरावगी मौहल्ले की शाला में बालक हस्ती ने गणित आदि का व्यावहारिक शिक्षण भी लिया। अजमेर में सांड परिवार के आग्रह पर अभयमल जी गम्भीरमलजी सांड के यहाँ केसरगंज में भी आप कुछ दिन रहे।