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[पंचम खण्ड : परिशिष्ट
वर्तमान में यह विद्यालय उच्च प्राथमिक विद्यालय के रूप में बालिकाओं को शिक्षा प्रदान कर रहा है। सम्प्रति यह विद्यालय श्री जैन रत्न विद्यालय परिवार के एक अंग के रूप में कार्यरत है तथा इसे शिक्षा विभाग, | राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त है। विद्यालय में १४ शिक्षक कार्यरत हैं तथा लगभग २२५ छात्राएँ अध्ययन कर ||
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1. श्री कुशल जैन छात्रावास, पालो प्रथम, पावटा, जोधपुर
- रत्नवंश परम्परा के मूल पुरुष पूज्य श्री कुशलचन्दजी म.सा. की द्विशताब्दी का आयोजन क्रियोद्धार भूमि भोपालगढ़ में परम पूज्य आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के पावन सान्निध्य में सम्पन्न हुआ।
श्री जैन रत्न विद्यालय, भोपालगढ़ के छात्र आगे अध्ययन हेतु आवास, भोजन एवं सुयोग्य संचालक का कुशल संरक्षण प्राप्त कर उच्च शिक्षा व सुसंस्कारों से सम्पन्न बनें, इस पुनीत लक्ष्य से इस छात्रावास को प्रारंभ करने | का निर्णय इस पावन प्रसंग पर लिया गया।
संस्थान के ट्रस्टीगण उदारमना समाजसेवी श्री सायरचन्दजी कांकरिया, श्री रतनलालजी बाफना, श्री रिखबचंदजी बाफना, श्री भंवरलालजी बाफना, श्री मूलचंदजी बाफना एवं उनके परिजनों के सहयोग से संस्थापित | एवं संचालित इस छात्रावास का पावटा, जोधपुर में अपना विशाल भवन है, जहाँ ३५ छात्र शिक्षणरत हैं।
छात्रावास में दसवीं कक्षा उत्तीर्ण छात्रों को प्रवेश दिया जाता है, छात्रों के आवास व भोजन की सुन्दर व्यवस्था है, साथ ही सुयोग्य गृहपति का संरक्षण भी प्राप्त है। छात्रावास में रहने वाले सभी छात्रों के लिए दैनिक प्रार्थना, प्रतिदिन सामायिक एवं प्रति सप्ताह संत-सती दर्शन अनिवार्य है। . श्री महावीर जैन पाठशाला योजना, जलगाँव
जलगांव जिले के गांवों में बच्चों में धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण करने के उद्देश्य से धार्मिक पाठशालाओं के संचालन का कार्य आचार्यप्रवर के रायचूर चातुर्मास में श्री मानमल जी ललवाणी की मौन साधना के उपलक्ष्य में उनके सुपुत्र श्री ईश्वरलालजी ललवाणी द्वारा प्रारम्भ किया गया, जो निरन्तर प्रगतिशील है। अब तक इस योजना के माध्यम से करीब २००० विद्यार्थी सामायिक, प्रतिक्रमण , पच्चीस बोल आदि के जानकार बन चुके हैं। सभी विद्यार्थियों की वर्ष में एक बार परीक्षकों की उपस्थिति में एक ही दिन एक ही समय परीक्षा आयोजित की जाती है। उत्तीर्ण परीक्षार्थियों को पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। प्रत्येक पाठशाला का प्रतिमाह निरीक्षण करने हेतु श्री हीरालाल जी मंडलेचा को नियुक्त किया हुआ है। योजना का सम्पूर्ण खर्च मै. राजमल लखीचन्द द्वारा वहन किया जाता है।
(आ) साधना-आराधना हेतु गठित संस्थाएँ ____ आचार्य भगवन्त सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् क्रिया पर विशेष रूप से बल देते थे, अत: सामायिक-साधना का उस महापुरुष का आह्वान आबाल-वृद्ध सबको आकर्षित करता था। हजारों हजार भक्त नित्य प्रति सामायिक साधना से जुड़े । गांव गांव, नगर नगर और महानगरों में “कर लो सामायिक रो साधन, जीवन उन्नत होवेला" की गूंज जिह्वा तक ही नहीं व्यवहार में परिलक्षित हुई। श्रावक और साधु के बीच साधक एक कड़ी के रूप में रहें, आचार्य भगवन्त के इस चिन्तन को साधना विभाग द्वारा तैयार साधकों से पूरा करने का प्रयास हुआ। दया-संवर, उपवास-पौषध की प्रवृत्ति गांव-गांव और घर-घर में जागृत हो, साथ ही आयंबिल आराधना केन्द्र चलें, आचार्य
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