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परिशिष्ट - प्रथम
चरितनायक की साधना में प्रमुख सहयोगी साधक महापुरुष
चरितनायक पूज्य आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. के व्यक्तित्व निर्माण एवं साधना में जिन महापुरुषों का सहयोग रहा है, उनकी कुछ चर्चा ग्रन्थ के आमुख में की गई है। यहाँ पर चरितनायक के गुरुदेव पूज्य आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी म.सा. प्रमुख सहयोगी सन्तों, माता महासती रूपकँवर जी एवं उनकी गुरुणी महासती बड़े धनकंवरजी म.सा. का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
पूज्य आचार्यप्रवर श्री शोभाचन्द्रजी म.सा.
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“गुरु कारीगर सारखा, टांकी वचन रसाल । पत्थर से प्रतिमा करे, पूजा लहे अपार ॥”
जीवन के कुशल शिल्पी जिन महासाधक ने अपनी गुरु-गंभीर शिक्षा-दीक्षा से बालक हस्ती के जीवन को घड़ कर उन्हें जन-जन का आराध्य गुरु, रत्नसंघ का देदीप्यमान रत्न व जिनशासन का दिव्य दिवाकर बनाने का | महनीय कार्य किया, उनका नाम है पूज्य आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. ।
आपका जन्म जोधपुर निवासी श्रेष्ठिवर्य श्री भगवानदास जी चामड़ की धर्मशीला धर्मपत्नी पार्वती देवी की | रत्नकुक्षि से वि.सं. १९९४ कार्तिक शुक्ला पंचमी को हुआ । सौभाग्य पंचमी को जन्म होने से आपका नाम शोभाचन्द्र (सौभाग्यचन्द्र) रखा गया ।
बालक शोभा को अध्ययन हेतु पाठशाला भेजा गया, पर आपमें बाल्य सुलभ चंचलता से अधिक गंभीरता थी। आप बचपन से ही एकान्त प्रिय थे । अध्ययन में मन लगता न देख कर पिता ने आपको व्यापार में जोड़ दिया, पर जिन्हें रत्नत्रय की आमदनी इष्ट हो, वे भला सांसारिक द्रव्यार्जन में कहाँ अटकते !
शुभ संयोगवश एवं आपके असीम पुण्योदय से पूज्यपाद आचार्य कजोड़ीमल जी म.सा. का पदार्पण हुआ । आपके धीर-वीर- गम्भीर व्यक्तित्व, साधनानिष्ठ जीवन व पीयूषपावन वाणी ने बालक शोभा को सदा-सदा के लिये | अपनी ओर आकृष्ट कर लिया । आचार्य श्री के सान्निध्य से शोभा के वैराग्य संस्कार सुदृढ होते गये। माता-पिता ने बहुत समझाया, संयम के परीषहों का भान कराया, पर सच्चे विरागी को कौन बांधे रख सकता है। अंतत: वि.सं. १९२७ माघ शुक्ला पंचमी का सुप्रभात आया, जब बालक शोभा ने संयम-जीवन स्वीकार कर अपने आपको सदा-सदा के लिये पूज्य कजोडीमलजी म.सा. को समर्पित कर दिया। अब आपके दो ही लक्ष्य थे - गुरु-सेवा व | ज्ञानाभ्यास । गुरु-सेवा करते हुए आपने शास्त्रों का अच्छा ज्ञान कर लिया, साथ ही संस्कृत व व्याकरण का भी पूरा अभ्यास कर लिया।
वि.सं. १९३६ में पूज्यपाद गुरुदेव आचार्य पूज्य श्री कजोड़ीमल जी म.सा. के स्वर्गारोहण के पश्चात् आपने अपने आपको गुरुभ्राता पूज्य श्री विनयचन्दजी म. सा की सेवा में समर्पित कर दिया। आपका पूज्य आचार्य श्री विनयचंदजी म.सा. के प्रति सहज समर्पण, अनुपम श्रद्धा-भक्ति देख कर हर कोई आगन्तुक आश्चर्य चकित रह