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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
७५७ पर प्राप्त इन गाथाओं के महत्त्व का आकलन कर इनका हिन्दी अनुवाद एवं विवेचन करने के साथ सम्बद्ध कथाओं का भी लेखन किया है। कथाओं के लेखन में अभिधान राजेन्द्र कोष, बोल संग्रह, सोलह सती और टीका ग्रन्थों का आलम्बन लिया गया है। दान कुलक में १८ गाथाएँ, शील कुलक में २० गाथाएँ, तप कुलक में २० गाथाएँ तथा भाव कुलक में १८ गाथाएँ हैं। प्रत्येक गाथा की हिन्दी में छाया पद्य के रूप में दी गई है, फिर उसके पश्चात् शब्दार्थ, भावार्थ और विशेषार्थ दिए गए हैं। इसमें आचार्य श्री के प्राकृत बोध और विवेचन वैशिष्ट्य का दिग्दर्शन होता है। पुस्तक में कुल ४७ कथाएँ हैं, जिनमें दान कुलक की ८, शील कुलक की १६, तप कुलक की १३ और भाव कुलक की १० कथाएँ हैं। कथाओं का लेखन संक्षेप में विषय को स्पष्ट करते हुए किया गया है। दान प्रकरण की कथाओं के शीर्षक इस प्रकार हैं-१. श्रेयांस कुमार २. चन्दनबाला ३. रेवती ४. कयवन्ना ५. शालिभद्र ६. धन सेठ, ७. बाहुबली ८. मूलदेव । शील से सम्बन्धित कथाएँ इस प्रकार हैं- १. राजमती २. सुभद्रा ३. नर्मदा सुन्दरी ४. कलावती ५. शीलवती ६. सुलसा ७. स्थूलभद्र ८. वज्रस्वामी ९. सुदर्शन सेठ, १०. सुन्दरी ११. सुनन्दा १२. चेलना १३. मनोरमा १४. अंजना १५. मृगावती १६. अच्चंकारिय भट्टा । तप प्रकरण की कथाओं के शीर्षक इस प्रकार हैं -१. बाहुबली २. गौतम गणधर ३. सनत्कुमार ४. दृढप्रहारी चोर ५. नन्दीसेन ६. हरिकेशी ७. ढंढण कुमार ८. अर्जुनमाली ९. धन्ना मुनि १०. महासती सुन्दरी ११. शिवकुमार १२. बलभद्र मुनि १३. विष्णु कुमार । भाव प्रकरण में इन कथाओं को शामिल किया गया है- १. राजर्षि प्रसन्नचन्द्र २. मृगावती ३. इलापुत्र ४. कपिल मुनि ५. करगड मुनि ६. मरुदेवी ७. पुष्पचूला ८. स्कन्दक शिष्य ९. द१र १०. चण्डरुद्र ।
कुलक संग्रह पुस्तक की उपयोगिता असंदिग्ध है। इसके पूर्व स्वाध्याय पाठमाला' प्रथम भाग में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के द्वारा 'गौतम कुलक' का प्रकाशन किया गया था। प्रस्तुत पुस्तक मण्डल के द्वारा सन् १९६५ ईस्वी में प्रकाशित की गई थी। (७) पर्युषण पर्व पदावली
इस पुस्तक की रचना स्वाध्यायियों के द्वारा पर्युषण पर्वाराधन के अवसर पर धर्मोपदेश करने के लक्ष्य से की गई प्रतीत होती है। पुस्तक के दो खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में अंतगड सूत्र के कथाभाग के क्रम से उसके भावों को प्रभावशाली रीति से प्रस्तुत करने वाले पद्यों का संकलन है। इसके अतिरिक्त इस खण्ड में पर्युषण, क्षमा, संयम, धर्म, षट् कर्माराधन, स्वाध्याय, सामायिक, क्रोध-निषेध आदि की प्रेरणा देने वाले भजन या गीत भी संकलित हैं। इस प्रकार प्रथम खण्ड उपदेशपरक पद्यों से सुशोभित है। द्वितीय खण्ड में कतिपय चरित्रात्माओं को प्रस्तुत करने वाले पद्यबद्ध चरित हैं। ‘आदर्श चरित्रावली' नामक इस खण्ड में द्रौपदी, इन्द्र और नमिराज संवाद, भृगु पुरोहित धर्मकथा, कान्हड कठियार कथा, मृगापुत्र और माता आदि के प्रेरणाप्रद जीवन-चरित्र हिन्दी भाषा में संकलित हैं। पर्युषण के दिनों में इनका चौपई के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
पुस्तक के प्रारम्भ में पर्युषण के आठ दिनों और संवत्सरी की ऐतिहासिकता पर आचार्य श्री के द्वारा प्रामाणिक प्रकाश डाला गया है।
(उ) अप्रकाशित / अनुपलब्ध साहित्य आचार्य प्रवर के प्रकाशित एवं उपलब्ध साहित्य का ही ऊपर परिचय दिया गया है। इसके अतिरिक्त | अनुपलब्ध एवं अप्रकाशित साहित्य भी जानकारी में आया है, यथा -