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गुरु कारीगर सारिखा, टांकी वचन रसाल। पत्थर से प्रतिमा करे, पूजा लहे अपार ॥
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
(४) सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तरी
पुस्तक के नाम ही यह स्पष्ट है कि इसमें सिद्धान्तगत प्रश्नों के उत्तर निहित हैं। वस्तुत: यह पुस्तक पर्युषण पर्वाराधन हेतु बाहर जाने वाले स्वाध्यायियों आवश्यक ज्ञानवर्धन की दृष्टि से रचित है। प्रश्न सभी महत्त्वपूर्ण एवं स्वाध्यायियों के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं । इस पुस्तक प्रथम संस्करण का सम्पादन श्री पारसमल जी प्रसून के द्वारा किया गया था। द्वितीय एवं तृतीय संस्करण का सम्पादन श्री कन्हैयालाल जी लोढा ने किया है। | वर्तमान उपलब्ध पुस्तक दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में तात्त्विक, दार्शनिक एवं वर्तमान युग से सम्बन्धित ३१ प्रश्नों के उत्तर हैं । द्वितीय खण्ड में अन्तगड सूत्र का वाचन करते समय उठने वाले प्रश्न एवं उनके समाधान हैं। | सभी प्रश्नों का समाधान तर्कसम्मत एवं युक्तियुक्त है । आधुनिक नवीन प्रश्नोत्तरों को जोड़ देने से द्वितीय संस्करण | की उपयोगिता बढ़ गई है। पुस्तक में संसार, ईश्वर, जीव, धर्म, जाति, सम्प्रदाय, पुरुषार्थ, क्रियाकाण्ड, अस्वाध्याय, अचित्त-जल, पौषध आदि के सम्बन्ध में तथा दिगम्बर एवं श्वेताम्बर मतभेद की भी विशद तात्त्विक चर्चा हुई है। अन्तगडदसा सूत्र के संबंध में अनेक प्रश्न पाठक के मन-मस्तिष्क में उठते रहते हैं, उनमें से कुछ का तार्किक | समाधान इस पुस्तक में उपलब्ध होता है । जैसे- एक प्रश्न यह है कि अर्जुनमाली द्वारा की गई ११४१ मानव - हत्याओं | का पाप अर्जुन को लगा या यक्ष को या अन्य किसी को । इसी प्रकार एक अन्य सैद्धान्तिक प्रश्न है - सम्यग्दृष्टि श्रावक के लिए धार्मिक दृष्टि से देवाराधना एवं तदर्थ तपाराधना उचित है क्या ? इस प्रकार के अन्तगडसूत्र तात्त्विक प्रश्नों का सम्यक् समाधान प्रस्तुत करने का सफल प्रयत्न किया गया है।
आचार्यप्रवर के मार्गदर्शन में तैयार हुई यह पुस्तक न केवल स्वाध्यायियों के लिए अपितु प्रत्येक जिज्ञासु लिए ज्ञानवर्धक एवं चिन्तन को नई दिशा देने वाली है। पुस्तक का द्वितीय संस्करण संवत् २०२९ में एवं तृतीय संस्करण सं. २०३७ में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल द्वारा प्रकाशित कराया गया है।
(५) जैन स्वाध्याय सुभाषित माला
सुभाषितों का जीवन-उन्नयन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. द्वारा इसी दृष्टि से संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी भाषा के सुभाषित संकलित किए गए थे, जिनका प्रथम प्रकाशन सन् १९६८ में हुआ था । अब द्वितीय संस्करण सन् १९९८ में प्रकाशित हुआ है, जिसके अन्तर्गत ३३ विभिन्न विषयों पर सुभाषित संकलित हैं। सुभाषितों के विषय हैं - साधु महिमा, सज्जन स्वभाव, लोभ, सन्तोष, दान, क्रोध, सत्य, दया, सत्संग, परिग्रह, | सन्मित्र, दुर्जन, तप, विद्या, वैराग्य, क्षमा, अहिंसा आदि ।
(६) कुलक संग्रह
दान, शील, तप और भाव को मोक्ष के साधन रूप में निरूपित किया जाता है। इन साधनों में प्रत्येक पर कुलक के रूप में प्राकृत गाथाओं का संकलन प्राप्त होता है। ये कुलक किसी एक आचार्य द्वारा रचित हैं या संग्रह, स्पष्ट रूप से इस संबंध में कहना कठिन है, क्योंकि इन कुलकों के अन्त में रचनाकार या समय का निर्देश नहीं है । भाषा शैली की दृष्टि से यह मध्यकालीन रचना प्रतीत होती है। आचार्यप्रवर श्री हस्ती ने दान, शील, तप और भाव