________________
७५०
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ४. इतिहास के अनेक नये तथ्य इसमें सामने आये हैं। श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर ५. चौबीस तीर्थंकरों के चरित को तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है।- डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ ६. इस इतिहास से अनेक महत्त्वपूर्ण नई बातों की जानकारी होती है।- डॉ. के सी जैन, उज्जैन। ७. जैन तीर्थङ्कर परम्परा के इतिहास को तुलनात्मक और वैज्ञानिक पद्धति से मूल्यांकित किया गया है।
-डॉ. नेमीचन्द जैन, इन्दौर ८. ऐतिहासिक तथ्यों की गवेषणा के लिए ब्राह्मण और बौद्ध साहित्य का भी उपयोग किया गया है।
-श्रमण, वाराणसी ९. फुटनोट्स के मूल ग्रन्थों के सन्दर्भ से यह कृति पूर्ण प्रामाणिक बन गई है। १०. इस ग्रन्थ में शास्त्र के विपरीत न जाने का विशेष ध्यान विद्वान् लेखक ने रखा है।
- डॉ. भागचन्द जैन भास्कर, नागपुर द्वितीय भाग – यह खण्ड केवली व पूर्वधर खण्ड के नाम से जाना जाता है। इस खण्ड में भ. महावीर के निर्वाण के पश्चात् के १००० वर्षों का प्रामाणिक इतिहास निबद्ध हुआ है। इन्द्रभूति गौतम, आर्य सुधर्मा, आर्य जम्बू इन तीनों केवलियों के जीवन और उनके कृतित्व का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में वर्णन करने के पश्चात् श्रुत केवली आचार्यों, दस पूर्वधर आचार्यों और सामान्य पूर्वधर आचार्यों का ऐतिहासिक आधार पर वर्णन किया गया है। श्रुत केवली काल के आचार्य प्रभव स्वामी, आचार्य शय्यंभव, आचार्य यशोभद्र स्वामी, सम्भूतविजय, आचार्य भद्रबाहु का परिचय दिया गया है। उनके अनन्तर आठवें पट्टधर के रूप में आचार्य स्थूलभद्र तथा उनके अनन्तर पट्टधरों के रूप में आर्य महागिरि, आर्य सुहस्ती, वाचनाचार्य बलिस्सह, गुणसुन्दर, वाचनाचार्य स्वाति, श्यामाचार्य, षांडिल्ल समुद्र, मंगू, नन्दिल और नाग हस्ती का वर्णन करते हुए इनके काल की विभिन्न घटनाओं और तत्कालीन अन्य आचार्यों यथा सुस्थित, आर्य इन्द्रदिन्न, कालकाचार्य, रेवती मित्र, सिंहगिरि, धनगिरि, अर्हद्दत्त, भद्रगुप्त, पादलिप्त, वृद्धवादी और सिद्धसेन, आर्य वज्रस्वामी, नागहस्ती का भी परिचय यथा प्रसंग दिया गया है। यथाकाल चाणक्य, चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, सम्राट अशोक, कलिंगपति खारवेल, पुष्यमित्र शुंग आदि राजाओं या राजनैतिक पुरुषों का भी निरूपण किया गया है। सामान्य पूर्वधर काल के अन्तर्गत वाचनाचार्य रेवती को भगवान् महावीर का १९ वां पट्टधर बताया गया है। उनके अनन्तर ब्रह्मद्वीपक सिंह, स्कन्दिल, हिमवन्त, क्षमाश्रमण, नागार्जुन, भूतदिन, दोहित्य, दूष्यगणि और | देवर्धि क्षमाश्रमण का परिचय देते हुये तत्कालीन राजवंश, धार्मिक स्थिति एवं अन्य आचार्यों और उनके कार्यों का भी वर्णन किया गया है।
इस प्रकार जैन धर्म के मौलिक इतिहास का यह द्वितीय खण्ड गौतम गणधर से लेकर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक की प्रमुख धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक घटनाओं का तथ्यपरक विवेचन करता है। आचार्य श्री ने भ. महावीर के २७ पट्टधरों का इसमें क्रमिक इतिहास संजोया है। द्वादशांगी के ह्रास एवं विभिन्न वाचनाओं के संबंध में शोध पूर्ण सामग्री प्रस्तुत की गई है। सम सामयिक धर्माचार्यों और राजवंशों के इतिवृत्तों को भी प्रस्तुत किया गया है। जैन इतिहास की जटिल गुत्थियों का प्रामाणिक हल देते हुए भारतीय इतिहास विषयक कतिपय अंधकार पूर्ण प्रकरणों पर नूतन प्रकाश डाला गया है। जैन परम्परा में श्रमणी और श्राविकाओं के योगदान को भी रेखांकित किया गया है। इतिहास जैसे गूढ एवं नीरस विषय का सरस, सुबोध एवं प्रवाह पूर्ण शैली में आलेखन किया गया है। मतभेद के प्रसंगों को उजागर करते हुए उनका समुचित समाधान गवेषणापूर्ण दृष्टि से प्रस्तुत करने का प्रयास किया