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________________ ७३६ (८) अंतगडदसासुत्तं अन्तगडदसा सूत्र का वाचन पर्युषण पर्व के अवसर पर प्रतिदिन किया जाता है। सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल | के माध्यम से अंतगडदसाओ के दो संस्करण निकल चुके हैं। प्रथम संस्करण सन् १९६५ ई. में तथा दूसरा संस्करण सन् १९७५ ई. में प्रकाशित हुआ । प्रथम संस्करण में प्राकृत मूल एवं हिन्दी अर्थ दिया गया था तथा अन्त में एक परिशिष्ट था, जिसमें विशिष्ट शब्दों का सरल हिन्दी अर्थ दिया गया था। द्वितीय संस्करण अधिक श्रम एवं | विशेषताओं के साथ प्रकाशित हुआ । इस संस्करण में कालम पद्धति अपना कर पहले प्राकृत मूल, फिर उसकी | संस्कृत छाया तथा उसके सामने के पृष्ठ पर शब्दानुलक्षी हिन्दी अर्थ (छाया) तथा अंतिम कालम में हिंदी भावार्थ दिया गया है। इन चारों को एक साथ पाकर नितान्त मंद बुद्धि प्राणी को भी आगम ज्ञान प्राप्त हो सकता है । यह द्वितीय संस्करण विशेषतः पर्युषण में वाचन की सुविधा हेतु उपयोगी है। इसके द्वारा संस्कृत का यत् किञ्चित् ज्ञान रखने | वाला पाठक भी मूल आगम का हार्द सहज रूप से समझ सकता है । अन्त में प्रमुख शब्दों का विवेचनयुक्त परिशिष्ट भी इस ग्रन्थ की शोभा है। नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं आकार में वृहत् होने के कारण पर्युषण पर्व की दृष्टि से फिर एक नया संस्करण तैयार हुआ जिसमें बांये पृष्ठ पर प्राकृत पाठ एवं दाहिने पृष्ठ पर हिन्दी अर्थ दिया गया है। इसका तीन बार प्रकाशन हो चुका है। संपादन डॉ. धर्मचन्द जैन ने किया है । - (आ) प्रवचन- साहित्य आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी महाराज सा. 'गजेन्द्राचार्य' के नाम से विख्यात थे । इसलिए उनके द्वारा फरमाए गए अधिकांश प्रवचन 'गजेन्द्र मुक्तावली' एवं 'गजेन्द्र व्याख्यानमाला' की शृंखला में प्रकाशित हुए। कुछ प्रवचन 'आध्यात्मिक-साधना', 'आध्यात्मिक- आलोक', 'प्रार्थना- प्रवचन', 'पर्युषण-साधना' आदि पुस्तकों के रूप में भी प्रकाशित हैं। उल्लेखनीय है कि आचार्यप्रवर के कतिपय व्याख्यान ही पुस्तक का रूप ग्रहण कर सके हैं। बहुत से प्रवचन अभी भी अप्रकाशित हैं तथा अधिकांश प्रवचनों का आशुलेखन भी नहीं हो सका था। वे प्रवचन तत्कालीन श्रोताओं को ही कर्णगोचर हो सके थे । आचार्य प्रवर के प्रवचन आगमाधारित होते हुए भी सहज एवं हृदयस्पर्शी हैं। (१) गजेन्द्र मुक्तावली मुक्ता भाग -१ - आचार्य श्री के प्रवचनों की सम्भवतः यह प्रथम पुस्तक है । इसका प्रकाशन सन् १९५० में श्री इन्दरचन्द जी | जबरचन्द जी हीरावत के द्वारा किया गया था। इसमें कुल ९ प्रवचन संकलित हैं - ( १ ) सर्व धर्म सहिष्णुता (२) दिल की दिवाली (३) सत्य महाव्रत (४) देश की दुर्दशा और उससे मुक्ति (५) धर्म और उसकी उपयोगिता (६) मनोजय के | सरल उपाय (७) आत्मतत्त्व मीमांसा (८) कारण विचार (९) जैन साधु की आधार शिला । आचार्य श्री के ये प्रवचन सारगर्भित रूप में विषय का विवेचन करने के साथ पाठक को आध्यात्मिक जीवन-निर्माण हेतु प्रेरित करते हैं । गम्भीर चिन्तन-मनन-निदिध्यासन एवं आचरण की कसौटी पर कसे हुए तथा लोक-हित के भावों से भरे हुए | प्रवचन हृदय में अदम्य उत्साह और स्फूर्ति का संचार करते हैं । आचार्य श्री सर्वधर्म समभाव की अपेक्षा सर्वधर्म ये
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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