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________________ तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड (३३) चारित्रवान गुरुदेव की महिमा (तर्ज- देखो रे आदेश्वर बाबा....) देखो देखो गुरु गजेन्द्र को, कैसा संयम धारा है ॥टेर ॥ केवलचन्दजी के पुत्र कहाये, रूपा मां के दुलारा है। धन वैभव और कुटुम्ब कबीला लागा विष सम खारा है ॥१ ॥ हो इतिहास के तुम निर्माता, तप गुण तुमको प्यारा है । ज्ञान ध्यान में रमण करत हो, क्रोध मान को मारा है ॥२ ॥ मुख मण्डल की छटा निराली, हंसमुख सौम्य अपारा है । पीड़ा जावे दर्शन करके, हर्षित भविजन सारा है ॥ ३ ॥ भक्त जनों की भीड़ लगी है मस्तक चरणों में डारा है । वाणी सुनते व्रत आचरते करते सफल जमारा है ॥४ ॥ जीवो और जीने दो सबको, मंत्र ही तारण हारा 1 अभयदान सम धर्म जगत में, नहीं अन्य श्रेयकारा है ॥५ ॥ समयं गोयम मा पमायए ये आदर्श तिहारा है प्रतिपल कीमती वृथा न खोओ, तो उतरो वैशाखी पूनम है आई, गाये गुण सुखकारा चरण कमल रज, हीरा शुभ के, मन में हर्ष अपारा है ॥७ ॥ 1 भव पारा है ॥ ६ ॥ 1 (३४) गणि गजेन्द्र गुणगान (तर्ज- तुमको लाखों प्रणाम....) गुरुदेव तुमको जग तारक लाखों प्रणाम ॥टेर ॥ वन्दन है नित्यमेव- तुमको.... मन है स्वच्छ गंग की धारा, जीत लिया है आलम सारा, काटे कर्म नित्यमेव - तुमको— हस्ती पूज्य है दिव्य सितारे, यथा नामवत् गुण के धारे, अप्रमाद की टेव तुमको.. नरतन मुनिपन और है नेता, परम विचक्षण अद्भुत वेत्ता, अति दुर्लभ है देव - तुमको... ७२३
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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