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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १६ दुःखी मन से अपने हाथ में लिया। उनके पास पिता दानमलजी बोहरा के द्वारा जो जमीन जायदाद छोड़ी गई थी, उसमें एक मकान बोहरों के बास में था, एक हवेली एवं नोहरा नयापुरा में था। इसके अलावा श्री लक्ष्मी प्रतापमलजी भंसाली के मकान की बगल में एक पोल एवं दुकान थी। • केवलचन्दजी पर दायित्व
भाई रामलालजी के असामयिक देहावसान के पश्चात् व्यवसाय का सम्पूर्ण कार्यभार केवलचन्दजी पर आ गया। दर्जियों के मोहल्ले के बाहर वे दुकान चलाते थे।
राजस्थानी संस्कृति में तीन-तीन पीढ़ियों तक अपनी बहन-बेटियों के पावन सम्बंधों के निर्वाह की परम्परा | है। बोहरा केवलचन्द जी पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के साथ पारम्परिक व्यापार के संवर्धन में भी परिश्रम पूर्वक | लगे रहे।
केवलचन्द जी सुडौल देहयष्टि एवं गौरवर्ण के धनी थे। वे हँसमुख एवं स्वस्थ थे। स्वभाव से धुन के पक्के, | सन्तोषी एवं भजनानन्दी थे। पीपाड़ और समीपवर्ती ग्रामों में जहाँ कहीं भी उन्हें आमंत्रित किया जाता, वे उत्साहपूर्वक भजन-कीर्तन में पहुँच जाते । उनके सुमधुर कण्ठ एवं चित्ताकर्षक गायन के कारण आबालवृद्ध सभी श्रद्धालु भाव विभोर हो झूम उठते थे। ___ पीपाड़ के राजमान्य श्रेष्ठिवर श्री गिरधारीलालजी मुणोत युवक केवलचन्द जी के व्यक्तित्व एवं सद्गुणों से प्रभावित थे। वे निमाज के ठाकुर का राजकार्य पीपाड़ में सम्भालते थे। उन्होंने अपनी सुपुत्री रूपकंवर का विवाह केवलचन्द जी से करने का निश्चय किया। उन्होंने यह प्रस्ताव नौज्यांबाई एवं बोहरा परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष रखा। प्रस्ताव सहर्ष स्वीकृत हुआ एवं वैशाख शुक्ला पूर्णिमा विक्रम संवत् १९६४ को बोहरा केवलचन्द जी रूपकंवर के साथ परिणयसूत्र में बंध गए।
__रूपकंवर के आने से नौज्यांबाई का दीर्घावधि से शोकमग्न चित्त आह्लाद से भर गया। केवलचन्द जी का व्यावसायिक दायित्व तो बढ़ा, किन्तु घर के कार्यों की देखभाल का भार कुछ कम हुआ। नौज्यांबाई, केवलचन्द एवं रूपकंवर का यह परिवार सुख की घड़ियों का आनंद लेने लगा। सास-बहू, पति-पत्नी एवं माता-पुत्र के रिश्ते पारस्परिक अगाध प्रेम के प्रतीक बन गए। समय बीतने के साथ संयोग से रूपादेवी गर्भवती हुई। सासू नौज्यांबाई को अवरुद्ध वंशवृक्ष के पल्लवित पुष्पित होने की आशा से अपार हर्ष हुआ और कई कल्पनाएँ मन में दौड़ने लगी। • बोहरा परिवार पर पुन: अनभ्र वज्रपात
किसे पता था कि पौत्र-जन्म, वंशवृद्धि एवं भावी सुख की कल्पनाओं में लीन नौज्यांबाई के परिवार पर अकल्पनीय पहाड़ टूट पड़ेगा। पौत्र-जन्म के दो माह पूर्व ही पुत्र केवलचन्द जी विक्रम संवत् १९६७ के आश्विन माह में प्लेग की महामारी की चपेट में आ गए और वे अपनी वृद्धा माता एवं तरुणी भार्या को बिलखती छोड़कर परलोक चल बसे।
_इस घोर वज्रपात से बोहरा परिवार मर्माहत हो गया। परिवार में कौन किसे ढाढस बंधाये, यही कठिन हो गया। नौज्यांबाई पहले से ही परिवार में अपने पतिदेव और बड़े पुत्र की मृत्यु की दुःखान्तिका से उबर ही नहीं पायी थी, अब इस त्रासदी से और विचलित हो उठी। पति-परायण रूपादेवी को जीवन के उषाकाल में ही अपने सौभाग्य सूर्य के अस्त हो जाने के कारण समग्र संसार घोर अंधकारपूर्ण लग रहा था। उसका स्वप्निल मधुर जीवन श्मशान