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ज्योतिर्विद्या की दृष्टि में आचार्यप्रवर
• डॉ. भगवतीलाल व्यास • आचार्य श्री की जन्म-कुण्डली
विक्रम संवत् १९६७ शाके १८३२ रवौ उत्तरायणे हेमन्त ऋतौ पौष मासे शुक्ले पक्षे १३ त्रयोदश्याम् ६/१२ | परं १४ तदनुसार दिनाङ्क १३ जनवरी १९११ इष्ट १५/३० सूर्य ८/२९ लग्न ०/२६ आर्द्रा १चरण राशि मिथुन ।
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महापुरुषों का जन्म विशिष्ट ग्रह नक्षत्रों के योगायोग में ही सम्पन्न होता है। यह तो निर्विवाद सत्य है कि मानव के समस्त क्रियाकलाप ग्रहों के द्वारा प्रभावित होते हैं, जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव चराचर जगत पर पड़ता है। कहा भी गया है। प्रत्यक्षं ज्योतिष शास्त्रं चंद्राकॊ यत्र साक्षिणौ।"
इस प्रकार सूर्य-चंद्र तो प्रत्यक्ष हैं ही, नक्षत्र तथा तिथ्यादि भी प्रत्यक्ष हैं। विज्ञान द्वारा यह सिद्ध किया जा | चुका है कि इन ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ता है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र सूर्य को आत्मा
और चंद्र को मन मानता है। जीवन के सारे क्रिया-कलाप सूर्य और चंद्र द्वारा नियन्त्रित होते हैं। इन दोनों ग्रहों का सामंजस्य ही जीवन को संचालित करके व्यवस्थित करता है। सूर्य आत्मा का कारक है अर्थात् अध्यात्म का अधिष्ठाता है। आध्यात्मिक जीवन में प्रवृत्ति सूर्य के कारण ही संभव है। जन्मकाल में सूर्य की स्थिति महत्त्वपूर्ण मानी गई है। यही नहीं उत्तरायण और दक्षिणायन का भी प्रभाव परिलक्षित होता है। महापुरुषों का आविर्भाव और महाप्रयाण दोनों उत्तरायण में ही श्रेष्ठ माने गये हैं। कहा भी गया- है “सौम्यायने कर्म शुभं विधेयम्"। पूज्य आचार्य श्री का जन्म भी उत्तरायण में हुआ और उन्होंने तप:प्त होकर महान् कार्यों से जीवन्मुक्त की अवस्था प्राप्त की। आचार्य श्री के जीवन के समस्त कार्य उत्तरायण सूर्य में ही सम्पन्न हुए। जैसे उनका जन्म सं. १९६७ पोष शुक्ला १४, दीक्षा माघ शुक्ला २ सं.१९७७, आचार्य पद की प्राप्ति अक्षय तृतीया सं. १९८७ तथा महाप्रयाण भी