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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
श्री हस्तीमल जी म. श्री को कुछ सुनाने का आदेश श्री घासीलाल जी म. श्री की ओर से होने पर उन्होंने कहा- हमें बड़ी प्रसन्नता है कि जिनके दर्शन वर्षों से करने की भावना अंतर में थी उनके निकट आज मैं पहुंच गया हूँ । उन | महान् कार्य आप सभी के सामने है। बीसेक वर्ष से अधिक समय से जब से पूज्य घासीलाल जी म. श्री सौराष्ट्र में | पधारे तब से आज तक आगमों का संस्कृत, हिन्दी, गुजराती और मूल प्राकृत भाषा में प्रकाशन अ. भा. श्वे. स्था. जैन शास्त्रोद्धार समिति द्वारा हो रहा है। यह सब प्रताप इन स्थविर, शास्त्रज्ञ, श्रुतप्रेमी मुनिश्री का है। अस्सी वर्ष की आयु में होते हुए भी, जिस उत्साह, उल्लास, लगन, परिश्रम और प्रेम से एक आसन पर विराज कर छः सात घंटे बिना विश्राम, लगातार, स्थविर मुनि श्री भावी पीढी की और आज की जनता की हित दृष्टि से शास्त्र उद्धार का कार्य कर रहे हैं, वह एक युवक को भी शर्मिंदा करे, वैसा है। आप सभी इससे अपनी शास्त्र रुचि बढ़ावें और जितना लाभ | उठा सकें उतना उठावें तब ही आप श्री का किया हुआ पुरुषार्थ सफल होगा। चार भाषाओं में से किसी एक भाषा का ज्ञाता भी उन आगमों का स्वाध्याय कर सूत्रबोध पा सकता है। आप सभी के पुण्य का उदय है कि ऐसे धर्म के ज्ञाता मुनिवर का यहां इस स्थान पर विराज कर नौ वर्षों से यह टीकादि रचना कार्य हो रहा है, जिससे आपको उनके | प्रतिदिन दर्शन व मंगलवाणी श्रवण का लाभ हो रहा है ।
पूज्य श्री घासीलाल जी म. श्री ने अपनी मधुर वाणी में बोलते हुए उनसे लघु संत श्री हस्तीमल जी म. के कहे हुए शब्दों को आशीर्वाद रूप बतलाया । यह करना उनका गुरुपने का प्रतीक है। महान व्यक्ति ही ऐसे वचन समरथमलजी म बोल सकते हैं। आगे उन्होनें फरमाया कि “समाज में मैंने तीन रत्न पाये श्री आत्माराम जी म, और मेरे पास बैठे हुए हस्तीमल जी म. । मारवाड़ की दो हस्तियाँ शास्त्रज्ञ व आचार में समर्थता की रूप हैं। पुरुषों में | गन्ध हस्ती ही ग्राह्य है जिनके प्रताप से दूसरे भाग जाते हैं, सामना करने की और खड़े रहने की भी उनकी ताकत | नहीं । इन हस्तीमल जी को मैंने आज ही देखा, पहिले सुना करता था कि मारवाड़ में ऐसा तेजस्वी साधु है। उन्हें मैं, | क्या कहूँ जोधपुर का राजा कहूँ या नव कोटि मारवाड़ का सरताज ?” यह कहते हुए उन्होंने संस्कृत में रचित अपनी एक प्रशस्ति गाना प्रारम्भ किया। यह अष्टक उन्होंने अतिथि मुनि श्री हस्तीमलजी को बाद में अर्पण भी किया । पुनः उन्होंनें एक-एक श्लोक लेकर उसका हिन्दी में भाव बतलाते हुए अन्त में प्रसन्नता प्रगट की कि ऐसे शांत, | शास्त्र मर्यादा में विचरने वाले उपकारी संत से मेरा मिलना हुआ और इस आनन्द में मैंने इस प्रशस्ति में उनके गुण गान किये हैं ।
पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा, स्थविर मुनि श्री घासीलालजी
पास सरसपुर में चार दिन विराजे । जिस | प्रेमयुक्त वातावरण में एक-एक विषय पर वार्तालाप होता था वह पूरा अल्पमति दर्शक के लिये ग्राह्य न भी हो रहा हो तो भी वह संतों की गोष्ठी की मधुरता का आस्वादन दैवीय प्रतीत हो रहा था। शनिवार के प्रातः आठ बजे पूज्य हस्तीमलजी म. सा. ने अपने संतों के साथ अति स्नेह पूर्ण भाव के वातावरण में विहार किया ।