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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं । श्रावक बातचीत करने को उत्सुक हों, या अन्य कोई भी व्यस्त कार्यक्रम हो तो भी प्रातः समय का ध्यान दोपहर । (मध्याह्न) का घंटे-पौन घंटे का ध्यान और रात्रि शयन काल पूर्व कल्याण मंदिर आदि स्तोत्रों व नन्दी सूत्रादि का स्वाध्याय होकर ही रहेगा। एक-एक क्षण का उपयोग और प्रति समय के लिए पूर्व आयोजित निश्चित कार्य अप्रमत्त ।। रूप से होना पूज्य श्री के लिये स्वाभाविक हो गया।
आकोदिया गांव की श्मशान शाला में बैठकर ध्यान हुआ ही। ध्यान का कार्य पूरा होने पर आगन्तुक श्रावक-श्राविकाओं ने निवेदन किया कि गुरुदेव अब एक भी बज चुका है, आप दूर से पधारे हो, आहार पानी भी ग्रहण नहीं किया है और वर्षा भी रुकी हुई है। कृपया आगे पधारें और हमारा गाँव पावन करें। गुरुदेव ने फरमाया, आपको अपने उत्साह में कभी-कभी गिरते छींटे न दिखते हों, मुझे तो अपने चश्मों के भीतर से भी वे दिख पड़ते हैं। जब तक वर्षा की एक भी बूंद दिखी, तब तक सभी बैठे रहे। पूर्णतः छोटे रुकने पर विहार हुआ तब अढाई बज चुके थे। गांव के निकट आने पर पुनः वही वर्षा । रास्ते कीचड़ से भरे पड़े थे। एकाध खाली जगह पर सभी को खड़ा रहना पड़ा। सांय साढ़े चार बजे आकोदिया मंडी के जैन मंदिर में, जहां कि संतों को विराजना था, वहां प्रवेश हुआ।
सर्दी अधिक थी, संतों के ओढने के सभी वस्त्र गीले थे। सूर्य प्रातः काल से दिन भर दिखा ही नहीं था। उस वायुमंडल में बिना पानी निचोड़े, वैसे ही सुखाए हुए उपकरण व चद्दरादि कब सूखने वाले थे। इस असाधारण हवामान में किसी भी प्रकार का दोष न लगे, उसकी पूरी सावचेती से संत परिस्थिति का सामना कर रहे थे। इधर संतों के साथ दिन भर रहने पर भी अपने यहां के दानान्तराय के कारण भक्तजन विह्वल बने हुए संतों की ओर टकटकी लगाये हुए थे।
मारवाड़ में बालोतरा का चातुर्मास पूर्ण कर पूज्य श्री ने भीनमाल, डीसा, पालनपुर के रास्ते से मुख्यतया | प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों के निरीक्षणार्थ व स्था. परम्परा के आचार्यों के हाथ से लिखी हुई प्रतियाँ यदि उपलब्ध हों तो उनके उचित संग्रह व संरक्षण की व्यवस्था देखने हेतु प्रवेश किया। बहुत परिश्रम से हजारों की संख्या में संगृहीत व व्यवस्थित ढंग से रखी बहुत प्राचीन काल की अनेक प्रतियाँ पूज्य श्री को पालनपुर, पाटण, अहमदाबाद, खंभात, छाणी, वडोदरा आदि के ज्ञान भंडारों में अवलोकनार्थ मिलीं। आगम प्रभावक मुनि श्री पुण्य विजय जी का मंतव्य था कि “पाटण के ताडपत्रीय संग्रह के शानी का कोई भी संग्रह भारत में या समस्त संसार में नहीं है।" उन्हीं के सहयोग व सद्भावना से उपर्युक्त भंडारों की अमूल्य निधि का भी निरीक्षण हो सका।
इन प्राचीन दुर्लभ अलभ्य हस्तलिखित प्रतियों की खोज करते हुए पूज्य श्री जब अहमदाबाद पधारे तब उन्होनें शास्त्र भंडारों के निरीक्षण के पूर्व, सरसपुर अहमदाबाद के एक हिस्से में विराजमान पूज्य श्री घासीलाल जी म. के दर्शन व सेवा का लाभ लेने की प्रबल भावना व्यक्त की। तदनुसार स्था. जैन सोसायटी के उपाश्रय से पूज्य श्री अपने संतों के साथ चैत्र शुक्ला ८ संवत् २०२२ को प्रातः आठ बजे विहार कर, सरसपुर के निकट पधारे तब तपस्वी श्री मदनलाल जी म. आदि संत और कुछ दूर तक पूज्य श्री घासीलाल जी म. श्री स्वयं सामने पधारे और संतों का मधुर मिलन हुआ जो कि स्मरणीय बना रहेगा। उपाश्रय में पधारने पर वंदना सुख साता पृच्छादि हुए। मंगल मिलन के पश्चात्, जो वहां उपस्थित श्रावकादि थे, उन्हें अन्योन्य प्रेम, अनुराग, श्रद्धा से युक्त वातावरण, में आज भी कान में गूंजते हुए हार्दिक स्नेह की भावना के शब्द सुनने को मिले। दोनों पूज्य वर सामने रखे हुए पाट पर विराजे तब प्रथम |