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प्रभावक योगी
श्री एस. एस.
प्रेरणा का फल - (i) सन् १९६२ की बात है जब जोधपुर में आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज का | चातुर्मास चल रहा था । मैं जोधपुर में आफीसर्स ट्रेनिंग स्कूल में राजस्थान लेखा सेवा की ट्रेनिंग ले रहा था । उस समय सप्ताह में एक दो बार आचार्य श्री के दर्शन करने हेतु सिंहपोल स्थानक पर जाया करता था। एक बार मेरे साथ मेरे एक साथी श्री बी. पी. मामगेन भी साथ हो लिये ।
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आचार्य श्री ने श्री मामगेन से जिज्ञासा की कि आपके जीवन में किसी प्रकार का व्यसन तो नहीं है । श्री | मामगेन ने बताया कि वे सिर्फ सिगरेट पीने के आदी हैं और दिन में लगभग एक पैकेट सिगरेट पी लेते हैं । आचार्य श्री ने सिगरेट के दुर्गुणों के बारे में अवगत कराया। श्री मामगेन ने आश्वासन दिया कि वे प्रातः एवं सायं खाना खाने के पश्चात् एक-एक सिगरेट लिया करेंगे एवं शनै: शनै: कम करने का प्रयास करेंगे। आचार्य की प्रेरणा का | फल था कि श्री मामगेन ने २-३ माह में बिल्कुल सिगरेट पीना बन्द कर दिया। आचार्य श्री की प्रेरणा शैली एवं | साधक व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उनकी प्रेरणा किसी को भी भारस्वरूप नहीं लगती व व्यक्ति व्यसनमुक्त हो अपना जीवन-निर्माण कर लेता ।
(i) इसी प्रकार १९८४ में जब मैं राजस्थान कोपरेटिव डेयरी फेडरेशन में था, तब आचार्य श्री शेषकाल में जयपुर से विहार करके किशनगढ़ की तरफ पधार रहे थे । मार्ग में जयपुर से लगभग २५ कि.मी. दूरी पर श्री तालेडा जी की फैक्ट्री पर बिराज रहे थे । मैं वहाँ दर्शन करने गया था। मेरे साथ एक ड्राइवर श्री कानसिंह भी साथ | गया था। जब मैं आचार्य श्री के दर्शन करके वापिस रवाना होने वाला था तब श्री कानसिंह ने भी आचार्य श्री के | दर्शन करने के बारे में जिज्ञासा की कि क्या मैं भी आचार्य श्री के दर्शन कर सकता हूँ? मैं उसे सहर्ष आचार्य श्री | के पास ले गया। शाम का समय था । आचार्य श्री ने उससे भी किसी व्यसन के बारे में जानकारी की। चूंकि वह राजपूत परिवार से था, अतः मांसाहार भी करता था एवं बीड़ी सिगरेट भी पिया करता था । आचार्य श्री ने उसे समझाया एवं श्री कानसिंह ने उसी समय मांसाहार एवं बीड़ी सिगरेट का त्याग कर दिया ।
सिद्ध योगी–वर्ष १९८०-८१ की बात है कि जयपुर से संघ ट्रेन द्वारा आचार्य श्री के दर्शन करने रायचूर गया था। उसमें मेरे पिताश्री, माताश्री एवं छोटा पुत्र श्री चितरंजन भी भीलवाडा से संघ के साथ गये थे। उस वक्त | मेरे पिताश्री श्री मनोहरसिंह जी चौधरी गोलेछा ग्रुप में उदयपुर मिनरल सिंडिकेट प्राइवेट लि. में प्रशासक थे एवं भीलवाडा में पदस्थापित थे । मुझे ऐसी जानकारी मिली कि मेरे पिताश्री को अचानक बड़ी जबरदस्त उल्टी हुई और उल्टी में खून भी निकला, जो लगभग दो बाल्टी था । आचार्य श्री को जब ऐसी सूचना मिली तो वे जहाँ संघ ठहरा हुआ था, पधारे और मेरे पिताश्री को मांगलिक प्रदान किया। उसी मांगलिक की देन थी कि मेरे पिताश्री इतनी | जबरदस्त उल्टी होने के पश्चात् भी ठीक होकर संघ के साथ ही सहर्ष जयपुर लौटे एवं आज भी सकुशल हैं। ९ फरवरी, १९९८
- सी ५५, प्रियदर्शी मार्ग, तिलकनगर, जयपुर
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