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स्वाध्यायी बनने की प्रेरणा
श्रीमती माहनी देवी जन
आचार्यप्रवर का सवाई माधोपुर के महावीर भवन में चातुर्मास चल रहा था । तप-त्याग में सभी भाई-बहिन | उत्साह पूर्वक भाग ले रहे थे । मेरा भी तपस्या करने का मन हुआ। उन दिनों पर्युषण प्रारम्भ होने वाले थे। मैं बेले का प्रत्याख्यान करने के लिये आचार्य श्री की सेवा में पहुँची । तो गुरुदेव ने फरमाया - "बाई, पर्युषण पर्व में धर्माराधन कराने के लिये खिजूरी ग्राम में आवश्यकता है।" मैं गुरुदेव की भावना को समझ गयी। मैं इससे पूर्व | कभी किसी अन्य क्षेत्र में पर्युषण पर्व पर सेवा देने हेतु नहीं गई थी, अतः मैं घबरा सी गई। मैं जैसे ही मना करने की हिम्मत जुटा रही थी कि आचार्यप्रवर ने प्रेरणा दी कि बहिन हिम्मत से जिन शासन की सेवा का कार्य करो । | उन्होंने अपने दोनों हाथों के संकेत से जो हिम्मत बँधाई, उसके कारण मैं साहस करके एक अन्य बहन रेखा जैन (अब | रक्षिता श्री जी म.सा.) के साथ खिजूरी ग्राम में पहुंची। वहाँ पर जो स्वाध्यायी पहले नियुक्त थे, वे किसी कारण से नहीं पहुंच सके थे। हमने वहाँ प्रार्थना, सूत्र- वाचन, प्रतिक्रमण आदि अलावा लीलावती चरित्र एवं अन्य पुस्तकों का वाचन - विवेचन किया। जिससे सभी श्रावक-श्राविकाएं बहुत प्रसन्न हुए। हमें भी आत्म-विश्वास का अनुभव | हुआ और पर्युषण पर्व में हुए धर्म आराधन को देखकर आनन्द का अनुभव हुआ । मैंने यह समझ लिया कि मेरे उस | बेले के तप की अपेक्षा धर्म-आराधन का यह कार्य उत्कृष्ट है। सवाई माधोपुर लौटकर मैंने आचार्य भगवन्त की सेवा | में पर्वाराधन का सारा विवरण प्रस्तुत किया। गुरुदेव प्रसन्न हुए और मुझे प्रतिवर्ष पर्युषण में सेवा देने के लिये प्रेरित | किया। गुरुदेव की इस प्रेरणा के फलस्वरूप मुझमें आत्म विश्वास सुदृढ हुआ । अतः मैं तब से प्रतिवर्ष पोरवाल क्षेत्र और महाराष्ट्र क्षेत्र में बिना हिचकिचाहट के पर्वाराधन हेतु स्वाध्यायी के रूप में सेवा दे
रही हूँ ।
- रघुनाथजी के मन्दिर के पास, आलनपुर, सवाई माधोपुर (राज.)