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(तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड में लिखना मेरे लिए संभव नहीं है।” पूज्य गुरुदेव ने फरमाया - “मेहनत से क्या नहीं होता ? तूं हिम्मत मत हार।" |
पूज्य गुरुदेव के वचनों से मेरा साहस बना और मैं पुन: लिखने लगा। चार दिन के बाद मेरे लेखन में कुछ सुधार आया।
चार - पांच दिन बाद मेरी गति बढ़ी, आत्मविश्वास जगा और गुरु कृपा से हाथ में शक्ति का संचार हुआ, जिससे मैं प्रवचन को नोट कर सका। पीपाड़ चातुर्मास के करीब सौ प्रवचन मैंने लिखे। पीपाड़ के पश्चात् भोपालगढ़, बालोतरा और अहमदाबाद चातुर्मास में मैंने प्रवचन-लेखन के साथ पत्राचार का काम किया।
आचार्य भगवन्त के कृपा प्रसाद से मुझमें आत्म-विश्वास जगा और मैं प्रवचन आलेखन-सम्पादन के साथ पत्राचार में यत् किंचित् सफलता अर्जित कर सका, उसमें पूज्य गुरुदेव का उपकार जीवन पर्यन्त भूल नही सकूँगा। आचार्य भगवन्त व्यक्ति-व्यक्ति में छुपी प्रतिभा विकसित करने वाले युगपुरुष रहे, जिन्हें आने वाली पीढ़ी श्रद्धा से स्मरण करेगी।
-अ.भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ कार्यालय,
घोड़ों का चौक, जोधपुर
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