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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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• गुणग्राहकता के पुजारी
आचार्य श्री बड़े गुणग्राही थे। जब कोई विद्वान् , विशेषज्ञ, साधक, तपस्वी अथवा सेवाभावी उनके सम्पर्क में | आते तो बड़ी एकाग्रता से उनके अनुभवों को सुनते तथा उनकी योग्यता का लाभ जन-जन तक पहुंचे इस हेतु बड़े | प्रमोदभाव से आप प्रेरणा देते।
आचार्य श्री का ध्यान प्रत्येक व्यक्ति के सद्गुणों की तरफ ही जाता था। पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं की कमजोरियों को उन्होंने कभी महत्त्व नहीं दिया। प्रत्येक प्रभावशाली व्यक्ति को संघ एवं शासन-सेवा में जोड़ने हेतु आप सदैव प्रयत्नशील रहते थे।
सन् १९८९ की महावीर जयन्ती को जैन जगत के प्रख्यात चिन्तक, विद्वान, अहिंसा प्रेमी, शाकाहार क्रान्ति एवं | तीर्थंकर के सम्पादक स्वर्गीय डॉ. नेमीचंद जैन (इंदौर वाले) आचार्य श्री के दर्शनार्थ मेरे साथ जोधपुर में पावटा स्थित स्थानक में पधारे । आपसी चर्चा के बाद आचार्य श्री ने डॉ. जैन को कहा-“आप विद्वान हैं। जैन धर्म की नींव आप जैसे विद्वानों के हाथ में है।” इतने बड़े आचार्य का विद्वानों के प्रति ऐसा आदरभाव सुन मैं गद्गद् हो गया।
ब्युटी विदाउट क्रूयल्टी (बिना क्रूरता सौन्दर्यता) पूना की अध्यक्षा श्रीमती डायना रत्ना के जोधपुर प्रवास के | समय, मैं उनको आचार्यश्री के दर्शन कराने पीपाड़सिटी ले गया। सौन्दर्य प्रसाधन के नाम से होने वाली हिंसा की| विस्तृत जानकारी दी एवं बतलाया कि अज्ञानवश किस प्रकार हिंसा और क्रूरता का प्रत्यक्ष-परोक्ष में अपने आपको अहिंसक मानने वाले भी अनुमोदन कर रहे हैं । दैनिक जीवन में जनसाधारण द्वारा उपयोग में लिये जाने वाले ऐसे चंद हिंसक पदार्थों की सूची बतलाई एवं उनके विकल्पों की भी चर्चा की। उन्होंने चांदी के वरक एवं अन्य हिंसक पदार्थों के निर्माण में होने वाली प्रत्यक्ष-परोक्ष हिंसा का आचार्य श्री के समक्ष चित्रण किया। उन्होंने बताया कि वे स्वयं तो ऐसे पदार्थों का उपयोग नहीं करती और जन साधारण में सजगता पैदा करने हेतु प्रयत्नशील हैं। एक अजैन महिला की अहिंसा के प्रति ऐसी निष्ठा देख आचार्य श्री को अत्यधिक प्रमोद हुआ एवं डायना रत्ना को अधिक उत्साह और निष्ठा से कार्य करने हेतु प्रेरणा मिली। • अहिंसात्मक - चिकित्सा पद्धति के प्रति आकर्षण __मेरा अहिंसक चिकित्साओं के प्रति विशेष आकर्षण था। १९८६ के बाद जोधपुर में ऐसी चिकित्साओं के प्रशिक्षण हेतु देश के विख्यात प्रशिक्षकों को महावीर इण्टरनेशनल संस्था द्वारा नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता था। जब मैं आचार्य श्री को उन चिकित्साओं की विशेषताओं की जानकारी देता तो वे मेरी बात को बहुत ही ध्यान से सुनते । उनका अहिंसक चिकित्साओं में पूर्ण विश्वास था।
आचार्य श्री जब कोसाणा का चातुर्मास समाप्त कर पीपाड़ से विहार कर जोधपुर पधारे तब उनका स्वास्थ्य अनुकूल नहीं था। तब रक्षा प्रयोगशाला के निदेशक डॉ. रामगोपालजी, सुश्री आशाजी बिड़ला, श्री रंगरूपमलजी डागा एवं मैंने एक्यूप्रेशर चिकित्सा-पद्धति द्वारा उपचार कराने का अनुरोध किया तो आपने सहज ही स्वीकृति दे दी। आप विकटतम परिस्थितियों में भी ऐसी दवाइयां लेना पसन्द नहीं करते थे, जिनमें प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा होती हो। आपकी प्रबल भावना थी कि साधु एवं साध्वी समुदाय आवश्यकता पड़ने पर एक्यूप्रेशर जैसी, सहज, सरल, अहिंसात्मक, निरवद्य पद्धति से अपना उपचार करें। इसी कारण जब बड़ोदा से एक्यूप्रेशर एवं चुम्बकीय चिकित्सा के विशेषज्ञ डॉ. जितेनजी भट्ट पधारे तब उन्होंने अपनी शिष्य मण्डली को इस पद्धति की जानकारी प्राप्त