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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
• कौन था वह ?
निमाज में आचार्य श्री का संथारा चल रहा था। मन में एक उत्सुकता थी कि आचार्य श्री के संथारे को नजदीक से देखा जाए। संथारे का शारीरिक अंगों तथा मन के भावों पर कैसा तथा किस रूप में प्रभाव पड़ता है , यह जिज्ञासा बलवती हुई। अतः बोर्ड की परीक्षा में प्रतिनियुक्त होते हुए भी एक-दो दिन छोड़कर दूसरे, तीसरे दिन निमाज पहुंचता था।
एक रात बिलाड़ा बस स्टेण्ड पर बस की इंतजार में ९.०० बज गये । आखिर एक ट्रक में बैठा। ट्रक ड्राइवर ने निमाज राजमार्ग पर एक किलोमीटर पहले उतरने की मुझे सलाह दी। मैं उतर गया। पास की गली से प्रस्थान किया। एक कि.मी. चला। उजाड़ जंगल । भूत की तरह झाड़ खड़े थे। आगे रास्ता नहीं। विचार हुआ, गलत रास्ता पकड़ लिया है। चढती रात है। यहां से लौटना चाहिये । आचार्य श्री के नाम का स्मरण करता हुआ वापस रवाना हुआ और राजमार्ग पर आ गया। वहां से प्रस्थान किया ही था कि एक साइकिल सवार आ पहुंचा। मैनें उससे निमाज के अन्दर जाने का रास्ता पूछा तो उसने सहज भाव से मुझे कहा-“आप मेरी साइकिल पर बैठिये । आप जहां चाहते हैं वहां आपको छोड़ दूँगा।" मैंने स्पष्ट मना कर दिया। लेकिन वह माना नहीं। उसके और मेरे बीच खींचताण हो गई। आखिर उसने मुझे साइकिल पर बैठने के लिए राजी कर लिया। मुझे साइकिल पर बिठाकर आचार्य श्री के संथारा स्थल पर लाकर छोड़ दिया। साइकिल से उतरने के पश्चात् वापस देखा तो वहाँ न साइकिल थी और न ही साइकिल सवार । • वह साइकिल सवार कौन व्यक्ति था? वह किसलिये वहां आया? ये प्रश्न अभी भी अनुत्तरित ही हैं।
-प्रधानाचार्य , राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
अरटिया कलां (जोधपुर)