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आलोक पुंज गुरुदेव
• श्री आसृलाल संचती गुरुदेव परम पूजनीय श्री गजेन्द्राचार्य एक आलोक पुंज के समान थे। ऐसा आलोक पुंज जो बाह्य आलोक के साथ-साथ आभ्यंतर आलोक भी प्रसारित करता है। इसीलिए वे अनुपम थे, अप्रतिम थे। गुरुदेव की उपस्थिति के फलस्वरूप जहाँ वातावरण में करुणा, शान्ति, अहिंसा व मैत्री का प्रकाश प्रसारित होता, वहाँ आन्तरिक आध्यात्मिक शक्ति की भी प्रगति होती थी। इस प्रकार अनेकानेक प्राणियों या व्यक्तियों को आत्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने का सहारा या सम्बल मिलता था। जो मैंने स्वयं देखा और अनुभव किया उस पर आधारित कुछ संस्मरण यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयत्न करूँगा। विज्ञ पाठक विस्तारभय के कारण संक्षिप्त विवरण को ही यथेष्ट समझें। • सामिष भोजन नहीं बना
गुरुदेव का सन् १९५८ में दिल्ली में चातुर्मास था और मेरा भी उत्तर रेलवे के मकान में निवास था। गुरुदेव का कृपा कर वहाँ पधारना हुआ। कुछ संतों की चिकित्सा के लिये मैंने उस गृह में विराजने का निवेदन किया। वहाँ पर एक प्रतिकूलता थी। आस पास के बंगलों में जैनेतर सामिषभोजी परिवार रहते थे, इसके चिह्न स्पष्ट दृष्टिगोचर थे। सत्य भी था कि वे ऐसे सामिष भोजी थे कि निरामिष व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता। वर्णन तो दूर, किन्तु जब उन सामिष बन्धुओं को ज्ञात हुआ कि गुरुदेव व जैन संत ऐसे स्थान पर निवास की विचारणा भी नहीं कर | सकते तो उन्होंने स्वयं आश्वासन दिया कि जब तक संत मुनिमण्डल वहाँ विराजेगा, वहाँ सामिष भोजन नहीं बनेगा
और यही हुआ। वहाँ निरामिष आहार ही बना और जब तक सन्त वहाँ विराजे, उन जैनेतर लोगों ने भी सन्त-सेवा का लाभ लिया। इस प्रकार वहाँ कुछ दिन ही सही, महती जीव हिंसा रुकी और शान्ति व करुणा का संचरण हुआ। • भक्त कृपालु
सन् १९६८-१९७१ तक मेरी नियुक्ति पश्चिम रेलवे क्षेत्र में अजमेर में थी, क्योंकि रेलवे का मकान शहर के बाहर मुख्य मार्ग के समीप था, गुरुदेव ने उसको एक से अधिक बार विराज कर पवित्र किया। इसमें प्रकटत: कारण मेरी दिवंगत धर्मपत्नी पर गुरुदेव की कृपा दृष्टि और उसका भी विशेष आग्रह था, किन्तु मुझे स्पष्ट अनुभव हुआ कि गुरुदेव मुझे आध्यात्मिक मार्ग पर लाना चाहते थे, अग्रसर कर रहे थे। न जाने गुरुदेव ने कैसे मुझे अपनी कृपा दृष्टि के लिए चुना था (यह अनुभव मेरे अनेक मित्रों को हुआ, जिनका जीवन-निर्माण गुरुदेव द्वारा हुआ)
“आंख तादर की नशेमन पर रही परवाज में" । जिस प्रकार पक्षी दूर गगन में ऊँचे उड़ते हुए भी अपने नीड पर एवं शिशुओं पर दृष्टि रखता है, गुरुदेव भी अपने भक्तों का सतत ध्यान रखते थे, उनका मार्गदर्शन करते रहते थे। अस्तु अजमेर प्रवास के कुछ बिन्दु सामाजिक एवं व्यक्तिगत दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहे ।