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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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यह प्रतिज्ञा ली कि ऐसे विलक्षण संत का संथारा जब तक न सीझे वे पशुवध और मांस भक्षण नहीं करेंगे। ऐसा समभाव का प्रभावशाली संथारा मैंने अपनी उम्र में नहीं देखा। आचार्य श्री के चेहरे पर अंतिम समय तक वही चिरस्थायी शांति व समभाव कायम रहा ।
दाह संस्कार के पश्चात् शाम को निमाज उद्यान में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी। समाज ने मुझे यह सौभाग्य दिया कि पूज्य गुरुदेव का अंतिम लिखित पत्र मैं सभा में पढ़कर सुनाऊँ । जिसमें परमपूज्य हीराचन्द जी | म.सा. को आचार्य और परम पूज्य मानमुनिजी महाराज को उपाध्याय घोषित करने के निर्देश थे ।
हमें इस बात की गौरवानुभूति है कि दोनों महापुरुषों के नेतृत्व एवं संरक्षण में हमारा संघ गतिमान एवं वर्धमान है । यह संघ सदा जयवन्त रहे व हम सब भी अपने कर्तव्य का पालन करें तो स्वतः संघ उत्तरोत्तर उन्नति की | ओर अग्रसर होगा, यह मुझे पूरा विश्वास है । २२ जनवरी, १९९८
- पूर्व न्यायाधिपति, राजस्थान उच्च न्यायालय एवं अध्यक्ष, उपभोक्ता संरक्षण आयोग, राजस्थान - महावीरनगर, रेजीडेंसी रोड, जोधपुर