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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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श्रावक श्रीचन्द जी गोलेच्छा मेरे यहाँ सपरिवार अपने दामाद नवलखा जी के साथ ठहरे हुये थे । महासतियां जी ३३ कि. मी. विहार कर कोटा पधारीं । गुरुदेव के दर्शन किए। मेरे निवेदन पर बंगले में रहने की स्वीकृति मिली । | महासती जी लम्बा विहार कर पधारी थीं। पैर में फफोले हो गए थे, घर पर पानी लेने के लिए पधारीं तब रसोई में | थोड़ा अंधेरा था। अज्ञानवश मेरे पहाड़ी रसोईदार ने बिजली जला दी, सतियां जी ने तुरन्त कहा चौपड़ा साहब घर | असूझता हो गया। मेरे बार-बार निवेदन करने पर भी और ऊपर की मंजिल में ठहरने का निवेदन करने पर भी महासती जी तो शहर की ओर विहार कर गयी। मेरे अन्तराय कर्म का बन्धन अधिक होने से कोई लाभ न ले | सका। महासती जी को शारीरिक कष्ट होते हुए भी शहर ओर पधारना पड़ा। कितना कठिन है जैन साधुचर्या का पालन एवं उसकी पालना में संत-सतियों की चारित्रिक दृढता । उसका प्रत्यक्ष अनुभव उसी दिन हुआ ।
जयपुर चातुर्मास में भी सेवा का लाभ मिला । तब मैं विधि सचिव था । प्रमोद मुनि जी की दीक्षा जयपुर | हुई। मैं उनके अभिनन्दन समारोह का मुख्य अतिथि था, मेरा नाम तब उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति हेतु राजस्थान से दिल्ली जा चुका था। गुरुदेव को पता नहीं स्वतः आभास हुआ, मुझसे पूछा–क्या साधना करते हो ? मैं जो करता था वह मैंने निवेदन किया। गुरुदेव ने फरमाया - " धर्म बहुत बड़ा सम्बल है ।" आचार्य श्री जैसे | महापुरुष बिना किसी सूचना के भक्त की कठिनाई को भांपकर उसका उपचार करने में सक्षम आध्यात्मिक वैद्य थे। | यह उन्हीं के पुण्य प्रताप और कृपा का प्रसाद है कि समस्त बाधाओं को पार कर मैं जज बना ।
निमाज की अंतिम भोलावण में संघ सेवा के अतिरिक्त गुरुदेव ने यह भी फरमाया था कि जैन एकता समय | | की महती आवश्यकता है। यह तुम्हारा प्रिय विषय भी है एवं तुम आधिकारिक रूप से इस पर बोल सकते हो। तुम्हारा कोई बुरा नहीं मानेगा, अत: जहाँ भी जाओ इसके बारे में अवश्य ही बात कहना। इससे यह ज्ञात होता है कि महापुरुष श्रावकों में सामञ्जस्य एवं जैन एकता के प्रबल पक्षधर थे ।
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उनका जीवन करुणा व प्रेम से ओतप्रोत था । बोलते कम थे, पर श्रद्धालु को देखते ही उसकी स्थिति को भांपने की विलक्षण प्रतिभा के धनी थे । श्रावक को समाधि व शांति प्राप्त हो इस ओर भी पूरी तरह सजग रहते थे। 'शांति पमाडे तेने संत कहिए व तेना दासानुदास थई ने रहिए ।" इस उक्ति को चरितार्थ करते थे । वे ऐसे संत थे जिनका सान्निध्य भी शांति प्रदान करता था ।
अजमेर, जोधपुर व पाली आदि क्षेत्रों में मुझे पूज्य श्री की सेवा का खूब लाभ मिला। पूज्य गुरुदेव ने पाली व निमाज में फरमाया था कि अब धर्म व शासन प्रभावना की तरफ ध्यान दो। पाली चातुर्मास के दौरान गुरुदेव का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा ठीक नहीं था, पर ऐसा भी नहीं था कि हम उनके पावन सान्निध्य से वंचित हो जायेंगे ।
पूज्य गुरुदेव के संथारा पच्चक्ख लेने के बाद करीब-करीब प्रतिदिन निमाज जाता था । कई लोग भीतर बैठे रहते थे, उनका सान्निध्य हासिल करने को लालायित थे। मैंने कभी अपने आपको आयोजकों पर थोपा नहीं । पंक्ति में खड़े होकर अपनी बारी आने पर दर्शन किए तथा पास के कमरे और मैदान में सामायिक लेकर बैठ जाता था । | संथारे के समय श्री मिट्ठालाल जी मेहता मुख्य सचिव राजस्थान सरकार, श्री इन्द्रसिंह जी कावडिया, आई. ए. एस. श्री | ज्ञानचन्दजी सिंघवी महानिदेशक पुलिस ( सपरिवार) दर्शन करने पधारे। संथारे के दौरान लाखों लोगों ने पूज्य गुरुदेव के दर्शन किए। पूज्य जयमल जी महाराज के पश्चात् सजगतापूर्वक संथारा कराने की मांग कर किसी आचार्य का यह इतना लम्बा संथारा सदियों पश्चात् हुआ। तेले की तपस्या सहित १३ दिनों तक यह संथारा चला। जैन व | जैनेतर सभी सम्प्रदाय के लोगों ने ही नहीं मुसलमान भाइयों ने भी इस फक्कड़ फकीर के दर्शन किए और उन्होंने